ग्वालियर। शहर की 128 साल पुरानी लाइफलाइन अब सिर्फ किताब में ही पढ़ी जाएगी और तस्वीरों में देखी जाएगी. दो फीट चौड़े ट्रैक पर 200 किमी तक 35 स्टेशनों के 250 गांवों के लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती नैनोगेज ट्रेन अब खुद अपनी ही मंजिल का रास्ता भटक गई है. वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है, जब ग्वालियर शहर में नैनोगेज ट्रेन की शुरुआत हुई थी, उस वक्त ये लोगों के लिए जीवन रेखा बन गई थी, पर धीरे-धीरे इसकी जरूरत भी कम होती गई और अब इसे ब्रॉड गेज रिप्लेस करने के लिए तैयार है. हो सकता है इसके कुछ कलपुर्जों को बतौर विरासत संभाल कर रख लिया जाए, पर हर हाल में अब ये बीते वक्त की ही बात होगी.
तत्कालीन महाराजा माधोराव सिंधिया ने 1893 में सिंधिया स्टेट रेलवे की स्थापना की थी, तब महल के अंदर ट्रेन दौड़ी थी, इसके बाद 1904 में नैरोगेज ट्रेन का ट्रैक बढ़ा दिया गया, जोकि उस वक्त की जरूरत थी. तब बैलगाड़ी-पैदल के सिवाय कोई और साधन नहीं था. नैरोगेज ट्रैक पर छुक-छुक करती ट्रेन जब गुजरती थी, लोगों का दिल बाग-बाग हो जाता था. क्योंकि इस ट्रेन की रफ्तार के साथ ही लोगों की जीवन शैली भी तेजी से बदलने लगी थी.
छोटी लाइन की बड़ी कहानी भाग-3: अकाल के दौर में खुशियां बरसाती छुक-छुक करती चली 'नैनो'ट्रेन
भले ही इस ट्रेन को बंद करने की करीब-करीब पूरी तैयारी हो चुकी है, पर उस वक्त इस ट्रेन को ट्रैक पर दौड़ाना बेहद मुश्किल था. अब इस ट्रेन को बंद कराने के लिए सिंधिया घराने के वारिस राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद ही रेल मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखा है, ताकि नैरोगेज के बदले ब्रॉडगेज ट्रैक पर हाई-टेक ट्रेनें दौड़ सकें, जबकि ज्योतिरादित्य के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ने खुद रेल मंत्री रहते हुए इस ट्रेन को अपग्रेड कराया था. यह ट्रेन ग्वालियर शहर की शान हुआ करती थी.