ग्वालियर।ग्वालियर नगर निगम में पिछले 57 साल से बीजेपी जीतती आ रही है. लेकिन इस बार कांग्रेस ने यहां कमाल कर दिया. अब सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि बीजेपी क्यों हारी. बीजेपी की हार के पीछे सबसे पहला कारण यह है कि इस चुनाव में जमकर गुटबाजी देखने को मिली. जब से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. उसके बाद इस अंचल में गुटबाजी और बढ़ गयी है. सबसे ज्यादा गुटबाजी बीजेपी के दिग्गज नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच है. अंदर ही अंदर ये दोनों दिग्गज नेता अपने वर्चस्व के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. यह लड़ाई इस बात को लेकर है कि ग्वालियर- चंबल संभाग का बीजेपी का सबसे बड़ा नेता कौन है. यही वर्चस्व की लड़ाई निकाय चुनाव में देखने को मिली.
उम्मीदवार पर अंत तक चली माथापच्ची :बीजेपी में महापौर उम्मीदवार के लिए यहां पर जमकर मंथन हुआ लेकिन इसके बावजूद महापौर प्रत्याशी का नाम फाइनल नहीं हो पा रहा था. ये दोनों दिग्गज नेता अपने-अपने समर्थकों को महापौर प्रत्याशी बनवाना चाहते थे. यही कारण था कि ग्वालियर महापौर का नाम फाइनल नहीं हो पा रहा था. बीजेपी की तरफ से कई कोर कमेटी की बैठक में हुई, लेकिन इसके बावजूद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर अपने अपने समर्थक के नाम पर अड़े रहे. जब यह बात नेतृत्व के पास पहुंची तो जल्दबाजी में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने ग्वालियर महापौर प्रत्याशी के रूप में सुमन शर्मा को फाइनल किया और इसके बाद इस नाम पर दोनों ही नेताओं की सहमति बन गई.
कुप्रबंधन का शिकार रहा मेयर का चुनाव :ग्वालियर नगर निगम के चुनाव में पहली बार देखा गया कि बीजेपी में जिस तालमेल और प्रबंधन के साथ चुनाव लड़ा जाता है वैसा इस चुनाव में नहीं देखने को मिला. इस चुनाव में बीजेपी के की तरफ से कोई रणनीति नहीं देखने को मिली और यही हार का सबसे बड़ा कारण रहा. इसके साथ ही बताया जा रहा है कि ग्वालियर की कमान बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के हाथ में थी. यही कारण है कि उन्होंने अपने चेहते नेताओं को ग्वालियर नगर निगम की कमान सौंप दी, जिनकी अंचल में कोई पकड़ नहीं थी और ना ही कोई पहचान थी. इस कारण इस चुनाव में कुप्रबंधन देखने को मिला.
सिंधिया और तोमर के बीच गुटबाजी :केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक नेता भी इस चुनाव में खुलकर मैदान में नहीं दिखाई दिए और ना ही वह प्रचार प्रसार के दौरान नजर आए. इसके पीछे का कारण दिलच्स्प है. इलेक्शन कैंपेन के दौरान सिंधिया समर्थकों को लगता रहा कि BJP की मेयर प्रत्याशी सुमन शर्मा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के गुट से आती है. वहीं तोमर के समर्थकों के बीच संदेश था कि वो सिंधिया की वजह से प्रत्याशी बनीं है. लिहाजा कंफ्यूजन में दोनों ही बड़े नेताओं के समर्थक और कार्यकर्ता प्रचार के लिए खुलकर बाहर नहीं निकले. जिन सिंधिया समर्थकों को टिकट नहीं मिल पाया था वो भी खासे नाराज थे. राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि ग्वालियर महापौर का चुनाव जीतना सिंधिया, तोमर दोनों के लिए साख का सवाल था, मगर समझ और सामंजस्य के घालमेल में सबने चुनाव से दूरी बना ली. नतीजा BJP की हार के रुप में सबके सामने है.