गुना।आदिवासी परंपरा में 'गल' यानी मचान का बेहद धार्मिक महत्व है. आदिवासियों की आस्था के केंद्र गल को न केवल पूजा जाता है, बल्कि मन्नत पूरी होने के बाद श्रद्धालुओं को लकड़ी पर बंधी रस्सी के सहारे झुलाया जाता है. ये परंपरा बमोरी तहसील के सिरसी क्षेत्र के नगदा गांव में पूरे भक्तिभाव से निभाई जाती है.
गला क्या होता है:ग्रामीण इलाकों में लकड़ी से बना एक मचान होता है, जिसका उपयोग खेतों की रखवाली के लिए किया जाता है. आदिवासियों की पारंपरिक भाषा में इसी मचान को गल कहा जाता है. आदिवासी परंपराओं में इस "गल" का विशेष महत्व है. परेशानियों और दुःखों से जूझ रहे लोग अपने इष्ट बाबादेव के नाम पर मन्नत मांगते हैं. इस उम्मीद में कि अगली होली तक उनके दुःख दूर हो जाएंगे.
ढोल मांदल की थाप पर भील नृत्य:होली पर धार्मिक परम्पराओं का यही गल जीवंत हो उठता है. गल के चारों ओर मेला भरता है. हजारों लोग इकट्ठे होते हैं. जिनकी मन्नतें पूरी हो जाती हैं, वे सजधज कर गांव वालों के साथ आते हैं. ढोल मांदल की थाप पर भील नृत्य शुरू किया जाता है. मन्नत पूर्ति होने के बाद व्यक्ति गल पर चढ़ता है. गल पर लकड़ी में बंधी हुई रस्सी के सहारे आस्थावान व्यक्ति को हाथों से बांधकर मन्नत के अनुसार तीन, पांच या सात बार घुमाया जाता है. इसका अर्थ है कि बाबादेव से जो पाया है, वह उन्हीं के चरणों में समर्पित कर दिया.