गुना। प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों में होने वाले उपचुनावों में अहम रोल गुना की बमोरी विधानसभा सीट का है. साल 2008 में अस्तित्व में आई बमोरी विधानसभा अनारक्षित सीट है. गुना जिले के चुनावी इतिहास में यह तीसरा मौका है, जब उपचुनाव होने जा रहा है. पहला उपचुनाव आज से 26 साल पहले चाचौड़ा में 1994 में हुआ था, तो दूसरा उपचुनाव 21 वर्ष पूर्व गुना विधानसभा क्षेत्र में 1999 में हुआ था. खास बात यह कि अस्तित्व में आने के बाद तीन विधानसभा चुनाव देखने वाली बमोरी अब उपचुनाव के लिए तैयार है. जानें बमोरी विधानसभा सीट के बारे में-
उम्मीदवार वहीं लेकिन चुनाव चिन्ह बदले
मार्च 2020 में कमलनाथ सरकार गिरने की सबसे बड़ी वजह थी ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेस छोड़ भारतीय जनता पार्टी में जाना. सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही उनके समर्थक विधायकों ने भी विधायकी से इस्तीफा दे दिया था और उसके बाद बीजेपी का दामन थाम लिया था. इस तरह विधानसभा की एक के बाद एक 25 सीटें खाली होती गईं और 3 सीटें विधायकों के निधन से खाली हो गईं. सिंधिया समर्थक महेंद्र सिंह सिसोदिया ने भी सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही विधायक पद से इस्तीफा दिया और बीजेपी में शामिल हो गए.
2008 में जब बमोरी में पहली बार चुनावी बिसात बिछी, तो बीजेपी से केएल अग्रवाल और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में महेंद्र सिंह सिसोदिया सामने थे. अगले विधानसभा चुनाव में भी अग्रवाल और सिसोदिया आमने-सामने रहे, लेकिन इस बार बाजी सिसोदिया ने मारी. हालांकि, 2018 के चुनाव में दोनों आमने-सामने तो हुए, लेकिन अग्रवाल बीजेपी से बगावत कर निर्दलीय मैदान में उतरे और तीसरे स्थान पर रहे. अब बमोरी सीट पर उपचुनाव है, लेकिन परिस्थितियां उलट हैं, क्योंकि दोनों उम्मीदवारों ने अपनी पार्टी बदलकर एक-दूसरे के सामने ताल ठोकी है. इस तरह उपचुनाव में उम्मीदवार तो वही होंगे, लेकिन चुनाव चिन्ह बदल जाएंगे.
ये भी पढ़ें-उपचुनाव में मंत्री मिथक तोड़ रचेंगे इतिहास या मुरैना में बदलेगा मिजाज ?
ऐसा रहा अब तक चुनावी इतिहास
साल | विधायक | पार्टी |
---|---|---|
2008 | कन्हैया लाल अग्रवाल | बीजेपी |
2013 | महेंद्र सिंह सिसोदिया | कांग्रेस |
2018 | महेंद्र सिंह सिसोदिया | कांग्रेस |
उम्मीदवार पुराने हैं, लेकिन पार्टी बदल गई
बमोरी विधानसभा सीट में सहरिया-आदिवासी और अनुसूचित जाति वर्ग के मतदाताओं की संख्या ज्यादा है. इस विधानसभा से पहला चुनाव बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर केएल अग्रवाल ने साल 2008 में जीता था. उस वक्त उनके निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेस से महेंद्र सिंह सिसोदिया थे. इसके बाद 2013 और 2018 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस से महेंद्र सिंह सिसोदिया ने था. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने केएल अग्रवाल को चुनावी टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था, लेकिन वह 28,488 मत प्राप्त कर तीसरे नंबर पर रहे थे. खास बात यह कि बमोरी विधानसभा उपचुनाव के इतिहास में पहली बार बीजेपी प्रत्याशी महेंद्र सिंह सिसोदिया प्रदेश सरकार में मंत्री रहते हुए चुनाव लड़ेंगे. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस उम्मीदवार केएल अग्रवाल का कहना है कि उम्मीदवार पुराने हैं, लेकिन पार्टी बदल गई है. यह चुनाव जनता के मुद्दे पर लड़ा जाएगा.
जानें प्रत्याशियों के बारे में-
जानें | महेंद्र सिंह सिसोदिया (बीजेपी) | कन्हैयालाल अग्रवाल (कांग्रेस) |
---|---|---|
पिता | स्वर्गीय राजेंद्र सिंह | स्वर्गीय रामेश्वर दयाल अग्रवाल |
जन्मतिथि | 30 अगस्त 1962 | 28 अगस्त 1948 |
शैक्षणिक योग्यता | बीएससी(B.Sc) | B.E (मैकेनिकल) |
राजनीति की शुरुआत | 80 के दशक से | 1966- 67 |
पहला चुनाव | 2008 बमोरी विधानसभा सीट | 1990 गुना विधानसभा सीट |
क्या हैं इस चुनाव में अहम मुद्दें-
- शिक्षा-बमोरी विधानसभा क्षेत्र में आज भी युवा उच्च शिक्षा के लिए मोहताज हैं. यहां एक कॉलेज नहीं, जहां छात्र अपनी स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के बाद जा कर उच्च शिक्षा ले सकें. इस वजह से या तो कई छात्र उच्च शिक्षा नहीं ले पाते, वहीं कुछ युवा बाहर जाकर अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं. बमोरी में 70 से 80 हजार युवा और छात्र होने के बावजूद यहां महाविद्यालय नहीं है.
- पानी के लिए तरस रहे लोग-बमोरी में लोगों को पानी के लिए मीलों का सफर तय करना पड़ता है. इलाकें में बेहतर पेयजल व्यवस्था नहीं होने के कारण रहवासियों को अपनी प्यास बुझाने के लिए एक साथ कई घड़ों को लेकर जाना पड़ता है. यहां तक बच्चे और बुजुर्ग भी पानी के लिए कई किलोमीटर पैदल सफर तय करते हैं.
- रोजगार के साधन नहीं-इलाके में न तो कोई उद्योग है और न हीं कोई फैक्ट्री जहां रहवासियों को रोजगार मिल सके. ऐसे में परेशान ग्रामीण पलायन करने और गरीबी में जीवन यापन करने को मजबूर हैं.
ये भी पढ़ें-उम्मीदवारों की आय का जरिया खेती, फिर भी करोड़ों की संपत्ति, जानें कब कितना हुआ इजाफा
- नहीं बन पाई नगर परिषद-कई बार घोषाणों के बावजूद अब तक म्याना नगर परिषद नहीं बन पाई है, जिस वजह से ग्रामीणों को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. म्याना नगर परिषद अस्तित्व में नहीं आने और बमोरी में SDM-SDOP स्तर के अधिकारी मुख्यालय पर नियुक्त नहीं हुए हैं.
- सड़क- पूरे विधानसभा क्षेत्र में सड़कों के हाल भी कुछ खास नहीं हैं. इस बार भी चुनाव में लोगों की बुनियादी सुविधा सड़क भी एक मुद्दा है.
- स्वास्थ्य-पूरे बमोरी विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ एक ही स्वास्थय केंद्र हैं, जहां सभी रहवासी अपने इलाज के लिए आश्रित हैं.
- खेती-इलाके में कोई भी उद्योग या फैक्ट्री नहीं होने की वजह से लोग पूरी तरह से खेती पर निर्धारित हैं. वहीं खेती में कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी कीटों के कारण फसल नष्ट होने से रहवासियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
- वनभूमि का पट्टा-बमोरी में इस बार वन भूमि पर पट्टों का मामला भी अहम होगा. करीब 800 परिवार अभी भी पट्टों पर अधिकार जता रहे हैं. चुनाव सीजन होने की वजह से इस क्षेत्र में पिछले महीनों में वन भूमि पर कब्जे को लेकर खूनी संघर्ष भी हुए हैं. दोनों ही दलों ने बड़ा वोट बैंक साधने की वजह से इस मामले में अब तक हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझा है.