गुना। यूं तो मालवा का प्रवेश द्वार शांति का टापू माना जाता है, इतना राजनीति द्वंद झेलने के बाद भी गुना में अशांति जैसी परिस्थितियां कभी नहीं बनी. जब भी यहां की आब-ओ-हवा में जहर घोलने की कोशिश हुई तो यहां के नागरिक अपनी मीठी बोली और आपसी भाई चारे की मिठास में नफरत को घोलकर पी गए. ऐसा भी कह सकते हैं कि जिस परम्परा का रिवाज है, कुछ उसी तरह आपसी सौहार्द के पर्यायवाची यहां के हिंदू-मुस्लिम हैं. गुना में दशहरा पर्व भी ऐसा ही मौका है, जब यहां की गंगा-जमुनी तहजीब की झलक दिखाई देती है.
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यहां मुस्लिम बनाते हैं रावण का पुतला
अक्सर कहा और समझा जाता है कि दशहरा पर्व हिंदू संस्कृति का त्यौहार है, लेकिन गुना शहर इस मामले में कुछ अलग है. यहां मुस्लिम समुदाय रावण के पुतलों का निर्माण करता है और हिंदू रीति-रिवाज से सार्वजनिक श्री रामलीला पर्व एवं दशहरा समिति दहन का दायित्व निभाती है. बदरवास निवासी जमील बताते हैं पिछले 25 सालों से हमारा परिवार रावण का पुतला बनाता आ रहा है, इसी से उनकी आजीविका चलती है, दशहरे के पहले ताजिया बनाने का काम करते हैं, उसके बाद रावण बनाने में लग जाते हैं, 7 अक्टूबर को गुना पहुंच गए थे, अब 15 अक्टूबर तक कंप्लीट कर दशहरा मैदान में पहुंचा देंगे.
बदलता गया रावण दहन का स्थान
शहर के इतिहास पर नजर डालें तो आजादी के बाद यानि वर्ष 1947 से यहां रावण दहन करने की परंपरा के प्रमाण मिलते हैं, पहले हिन्दू उत्सव और 1986 से सार्वजनिक श्री रामलीला पर्व एवं दशहरा समिति रावण दहन का आयोजन करती है. जिला प्रशासन समिति इसमें सहयोग करता है, जिसमें मैदान उपलब्ध कराना, साफ-सफाई, दर्शकों के लिए जलपान और मंच आदि शामिल है. ये कार्यक्रम पहले भुजरिया तालाब के पास खाली मैदान में होता था, आबादी बढ़ने के चलते स्थान बदल दिया गया. संजय स्टेडियम के बाद इस आयोजन को अंतत: गोपालपुरा मैदान में शिफ्ट कर दिया गया, अब दशहरे की पहचान यही मैदान है.