डिंडौरी। जिले का समनापुर ब्लॉक यहां बैगा चक नाम से एक बड़ा इलाका है. इसी बैगा चक में पोंडी नाम का एक गांव है. इस बैगा चक में भारत की एक संरक्षित जनजाति बैगा रहती है, बैगा जनजाति के लोग जंगल में ही रहना पसंद करते हैं. इनकी अपनी सांस्कृतिक पहचान है. इनके रीति रिवाज और रहन-सहन की वजह से इस जनजाति को संरक्षित जनजाति का दर्जा भारत सरकार ने दिया हुआ है.
जब पानी की कमी से पलायन करने लगे लोग:बैगा जिस डिंडोरी के जंगलों में रहते हैं. वह इलाका सदियों से इनका प्राकृतिक निवास रहा है. पहले इस इलाके में घने जंगल हुआ करते थे. इन जंगलों से बैगा जनजाति को अपनी जरूरत का पूरा सामान मिल जाता था. बैगा पूरी तरह से प्राकृतिक जीवन में जीने वाले लोग होते हैं. इनके भोजन में मोटे अनाज कोदो कुटकी रागी जंगली अरहर जैसी चीजें शामिल हैं. वहीं छोटे-छोटे खेतों में ये लोग धान की फसल भी उगा लेते थे. इसके अलावा जंगल में शिकार करके भी इनका भरण पोषण हो जाता था, लेकिन धीरे-धीरे जंगलों की कटाई हुई और प्राकृतिक जंगल काट दिए गए. इसकी वजह से बैगा चक इलाके में भी पानी की कमी होने लगी और बैगा जनजाति के लोगों को पलायन करना पड़ा. बैगा चक इलाके में संकट आया तो सरकार ने पानी बचाने की कुछ सरकारी प्रयास किए, लेकिन सरकार इन दूरदराज इलाकों को पानी जैसी बुनियादी जरूरत मुहैया नहीं करवा पाई.
उजियारो बाई का भागीरथी प्रयास:कुछ साल पहले उजियारो बाई नाम की एक बैगा महिला ने अपने समाज के लोगों को प्राकृतिक जंगल को बचाने की बात समझाना शुरू किया. उनके साथ एक समाज सेवी भी जुड़े हुए थे. उजियारों की पहल धीरे-धीरे बैगा चक इलाके के कई गांव तक पहुंची. 15 साल के प्रयास के बाद आज इस इलाके में पर्याप्त पानी है. एक सूखी नदी में झरने फूट गए हैं और अब वह साल भर पानी देती है. इन्हीं झरनों की वजह से गांव के कुआं में भी अब पानी आ गया है. पानी आने के बाद बैगा महिलाओं ने अपने छोटे-छोटे खेतों में सब्जी की फसल उगाना शुरू कर दिया है. वहीं छोटे धान के खेतों में अब गुजर-बसर लायक धान होने लगी है. हरियाली होने की वजह से गांव के मवेशियों को चारा मिलने लगा है. कुल मिलाकर इन दूरदराज जंगल में बसे गांव में बैगा जनजाति के लोगों के लिए उनके जीवन यापन से जुड़ी सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हो रही हैं. इसलिए अब इस गांव में खुशहाली नजर आने लगी है.