डिंडौरी। जिले के शहपुरा और ग्रामीण इलाकों में मिट्टी से दीपक बनाये जाते हैं, यह इनका पारंपरिक व्यवसाय है. खेतों से मिट्टी लाकर उसे फुलाकर कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद बनते हैं ये दिेये. जिसमें कलाकारों की मेहनत के साथ-साथ लागत भी लगती है, जिसके चलते इनके दामों में बढ़ोत्तरी हुई है. वहीं बाजारों में चाइना के दीपकों के प्रचलन से इनका व्यवसाय भी सिमटता जा रहा है. हालांकि कई संगठनों के प्रयास से मिट्टी के दीपक जलाने के लिए जागरुकता भी बढ़ रही है.
मिट्टी के दिये से रोशन होंगे घर, महंगाई के कारण कुम्हारों ने बढ़ाए दाम - Mangal Prasad of Karaundi village
डिंडौरी जिले के करौंदी गांव के मंगल प्रसाद कई पीढ़ियों से दिये बनाने का काम कर रहे हैं, लेकिन चाइना के दियों का प्रचलन होने से जहां एक ओर इनका व्यवसाय कम होता जा रहा है वहीं लागत अधिक होने से इनके दाम भी बढ़ रहे हैं.
करौंदी गांव के कुम्हार मंगल प्रसाद ने बताया कि वह करीब बीस साल से मिट्टी के दिये बना रहे हैं, जिसके लिए मिट्टी को चंदिया से लाया गया है. वह करीब दस हजार मिट्टी के दिये बना रहे हैं. जिन्हें बनाने में काफी मेहनत और लागत लगती है इस लिए इस बार इनकी कीमत करीब दस रुपये प्रति दर्जन बढ़ा दी गई है.
मंगल प्रसाद एवं उनका परिवार अपने गांव में हर घर को सालों से रोशन करते आ रहे हैं. गांव के लोग उन्हे दियों के बदले आनाज देते हैं, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता है. इनका परिवार कई पीढ़ियों से दिए बनाने का काम कर रहा है, जिसे मंगल प्रसाद बरकरार रखे हुए हैं.