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डिंडौरी में आसमान पर देशी मशरूम के दाम, रहवासियों के बीच फिर भी ऑन डिमांड

आदिवासी जिला डिंडोरी में इन दिनों न्यूट्रिशन से भरपूर पिहरी यानी देशी मशरूम की खासी डिमांड है. हालांकि, इसके भाव बहुत महंगे हैं, इसके बावजूद स्थानीय आदिवासी बारिश के मौसम में लोकल मशरूम खरीदना खासा पसंद कर रहे हैं.

pihri
देशी मशरूम

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Published : Jul 8, 2020, 8:59 AM IST

Updated : Jul 8, 2020, 9:24 AM IST

डिंडौरी। नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण आदिवासी जिला डिंडोरी में जंगल-पहाड़ों के बीच जहां प्रकृति का करीब होना महसूस होता है, वहीं यहां के जंगलों में साल में एक बार होने वाली पिहरी यानी देशी मशरूम की इन दिनों डिमांड स्थानीय मार्केट में बढ़ रही है. हालांकि, इस पिहरी की कीमत काफी ज्यादा है, इसके बावजूद स्थानीय लोग इसके लाभकारी होने के कारण इसे लेना खासा पसंद कर रहे हैं.

देशी मशरूम ऑन डिमांड

देशी मशरूम की भारी डिमांड

इन दिनों डिंडोरी के मार्केट में देशी मशरूम की भारी डिमांड है, जिसे स्थानीय भाषा मे पिहरी कहा जाता है. पिहरी ज्यादातर बारिश के मौसम में जंगलों में धरती से फूट कर निकलती है. लोगों की मानें तो जब तेज गर्जना के साथ बारिश होती है, तभी जंगलों में पिहरी धरती चीर कर निकलती है. साल भर में पिहरी सिर्फ 15 से 20 दिनों के लिए ही निकलती है, जिन्हें स्थानीय रहवासी खाने और बेचने के लिए तोड़ते हैं.

भरपूर मात्रा में न्यूट्रिशन

बारिश के दिनों में पिहरी की कीमत इतनी ज्यादा होती है कि मांस और दूसरी सब्जियां इससे काफी पीछे छूट जाती हैं, फिर भी इसके गुणकारी और लाभदायक होने के कारण मार्केट में इसकी ज्यादा मांग रहती है. जानकारों की मानें तो जंगल मे मिलने वाली मशरूम के मुकाबले उत्पाद वाले मशरूम की कीमत कुछ भी नहीं है. वहीं जंगली मशरूम यानी पिहरी में न्यूट्रिशन भरपूर मात्रा में होता है.

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कई वैरायटी में मौजूद है मशरूम
कृषि वैज्ञानिक डॉ सतेंद्र कुमार ने बताया कि डिंडौरी के जंगलों में जब बारिश के दौरान बिजली कड़कती है तब धरती से ये मशरूम निकलता है, जिसे लोकल बोली में पिहरी कहा जाता है. डिंडौरी के जंगलों में भोंडा पिहरी और सरई पिहरी के साथ साथ पिहरी की कई वैरायटी भी निकलती है, जिसकी लोकल मार्केट में भारी डिमांड रहती है. वहीं जिले में बटर मशरूम और ढींगरा मशरूम की उतनी डिमांड नहीं है, जितनी स्थानीय मशरूम की है.

दामों में उछाल का कारण
कृषि वैज्ञानिक डॉ सतेंद्र कुमार ने बताया कि, लोकल मार्केट में जंगली पिहरी की डिमांड इसलिए ज्यादा रहती है, क्योंकि ये साल में एक बार ही मिलती है. भोंडा पिहरी 400 रुपए प्रति किलो और सरई पिहरी 120 रुपए प्रति किलो के भाव से बिक रहा है. भोंडा पिहरी लंबी होती है, वहीं सरई पिहरी छत्ते आकर की और छोटी होती हैं.

दवाई के लिए भी कारगर
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि, यह शोध का विषय है कि डिंडोरी के जंगलों में सालों से बारिश के दौर में निकलने वाली पिहरी पौष्टिक और गर्म होती है, जिसे स्थानीय लोग दवा के रूप में भी इस्तमाल करते हैं, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं है. ऐसे में जंगली पिहरी का शोध होना चाहिए, ताकि इसकी गुणवत्ता के बारे में सबको मालूम हो सके.

Last Updated : Jul 8, 2020, 9:24 AM IST

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