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आदिवासी बैगाओं की अद्भुत होली, मुर्गे की बली, फाग पर डांस, झूमते बुजुर्ग, महिलाएं और परिवार

डिंडौरी यूं तो आदिवासी जिला है, जहां आदिवासी सहित बैगा जनजाति के लोग आज भी अपनी पारंपरिक पोषक के साथ रहना खाना और त्योहारों का आनंद लेना पसंद करते हैं. वहीं बैगाओं की होली आम जनों की होली से कुछ अलग होती है.

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बैगाओं की अद्भुत होली

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Published : Mar 7, 2020, 7:03 AM IST

डिंडौरी। जिले के समनापुर जनपद क्षेत्र के टिकरिया गांव मे होली का रंग बैगाओं को कुछ इस तरह से चढ़ता है कि जो भी इसमें शामिल होता है फाग की धुन पर झूम उठता है.

बैगाओं की अद्भुत होली

दी जाती है मुर्गे की बली

बुजुर्ग बैगाओं की माने तो होलिका दहन के दूसरे दिन वो अपने ईष्ट देवी देवताओं की पूजा पाठ करते है. उनपर धूप, फूल , रंग ,गुलाल और पानी चढ़ा कर उनसे सुख समृद्धि की कामना करते हैं. इसके बाद बैगा परिवार अपने अपने हिसाब से देवी दिवालय में मुर्गे की बलि चढ़ा कर फिर हाथ से बनी मदिरा भेंट कर त्योहार की शुरुआत करते है.

विशेष होती है तैयारी

होली के दिन पुरुष वर्ग अपने घरों की मवेशियों को जंगल में चरने के लिए छोड़ने जाते हैं और महिलाएं घरों की साफ सफाई और पूजा पाठ कर पकवान तैयार करती हैं. बैगा अपने-अपने घरों में मवेशी पालते हैं. और गाय और बैल बांधने के लिए गौशाला बनाई जाती है. और उसी गौशाला में मुर्गे की बलि देते हैं.

पानी की समस्या पर गाते हैं फाग

महिलाएं घेरा बनाकर गांव मे पानी की समस्या पर फाग गीत गाकर भगवान को सुनाते हैं. ताकि पानी के चलते उनकी फसल प्रभावित न हो. फाग गाते समय महिलाएं एक दूसरे की कमर पर हाथ रखकर मांदर बजाने वाले के चारों तरफ घूमती हैं. वहीं फाग गीत के बोल भी बैगानी भाषा के होते हैं. बैगा महिलाओं के गाए गीत के सुर इतने सुरीले होते हैं कि सुनने वाले को मंत्र मुग्ध कर दें.

5 दिन चलता है बैगाओं का फाग

होली के दूसरे दिन से पंचमी तक पांच दिनों के लिए बैगाओं द्वारा फाग गाया जाता है. फाग गाने वाले भी मंजे होते हैं. जिसका लुत्फ महिलाएं, बच्चे और गांव के बुजुर्ग उठाते हैं.

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