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जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे बैगा आदिवासी, कहा: जान देंगे लेकिन जमीन नहीं

डिंडौरी जिले के बरेंडा ग्राम के बैगा आदिवासी आज भी वन विभाग से अपने जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं. जिसे लेकर ग्रामीणों ने कहा कि पूर्वजों की जमीन नहीं छोड़ेंगे, फिर चाहे उनकी जान ही क्यों न चली जाए.

Baiga tribal
बैगा आदिवासी

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Published : Oct 15, 2020, 5:30 PM IST

Updated : Oct 15, 2020, 5:54 PM IST

डिंडौरी। आदिवासी जिला डिंडौरी में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई अब भी जारी है. अपने पूर्वजों से काबिज आदिवासी बैगा और कुछ अन्य समाज के लगभग 36 परिवार जंगल की जमीन का मालिकाना हक पाने के लिए जिला प्रशासन और वन विभाग से सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं. आलम ये है कि प्रशासन इनके सभी दस्तावेजों को अमान्य कर इनका जमीनी हक को निरस्त कर रहा है, तो वहीं अब बरेंडा के बैगा आदिवासी अपने पूर्वजों की जमीन छोड़ने को राजी नहीं है, फिर चाहे उनकी जान ही क्यों ना चली जाए. बैगा आदिवासी जंगल में कई सालों से खेती कर, अपना जीवन यापन करते आ रहे है.

बैगा आदिवासी लड़ रहे अपने हक की लड़ाई, नहीं हो रही सुनवाई

ग्रामीणों ने लगाए ये आरोप

ये मामला डिंडौरी जिले के करंजिया विकासखंड क्षेत्र की बरेंडा गांव का है, जहां करीब 36 परिवार जंगल में अपने पूर्वजों से काबिज होकर निवास कर रहे हैं. ग्रामीणों का आरोप है कि आए दिन वन विभाग के अधिकारी उन्हें जंगल खाली करने के लिए धमकाते हैं, और उनकी लगाई फसल को मवेशियों को चरवाने के लिए आमादा है.

जंगल की लड़ाई में कई ग्रामीणों की गई जान

ग्रामीणों ने ये भी आरोप लगाया है कि वन विभाग के लोगों ने इनके बनाए कच्चे घरों को भी नष्ट कर उजाड़ दिया. बरेंडा ग्राम के आदिवासी बैगाओं ने इसकी गुहार जिला प्रशासन से भी लगाई थी, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है. ग्रामीणों ने बताया कि वन विभाग से जंगल की इस लड़ाई में कई ग्रामीणों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा है.

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जिला प्रशासन ने दावा किया निरस्त

वनाधिकार पट्टा पाने के लिए बरेंडा के आदिवासी बैगाओं ने अपना दावा जिला प्रशासन के सामने प्रस्तुत किया था, लेकिन उसे प्रशासन ने ये कहकर निरस्त कर दिया, कि उन्हें 75 साल का काबिज प्रमाण पत्र आवेदन में संलग्न करना होगा. ग्रामीणों ने बताया कि पढ़ाई लिखाई से दूर अशिक्षा का जीवन जी चुके आदिवासी बैगाओं के पूर्वजों ने इतना नहीं सोचा था कि आने वाली पीढ़ी को भी वहीं लड़ाई लड़नी होंगी, जो वे लड़ चुके थे.

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ग्रामीणों ने कहा- जान देंगे जमीन नहीं

  • कई आदिवासी ग्रामीणों के मामले जिला न्यायालय में बीते 6 से 7 सालों से चल रहे हैं, जिसकी पेशी में उन्हें आज भी जाना पड़ता है. ग्रामीणों ने एक मत होकर कहा है कि भले ही उन्हें अपने जंगल की लड़ाई किसी भी स्तर पर क्यों न लड़नी पड़े, लेकिन वे अपने पूर्वजों की खेती नहीं छोड़ेंगे, चाहे इसके लिए उन्हें अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े.
Last Updated : Oct 15, 2020, 5:54 PM IST

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