नई दिल्ली/धार (Agency, PTI)। मध्य प्रदेश के धार जिले में 2017 में चार साल की बच्ची से रेप और हत्या के लिए 20 वर्षीय व्यक्ति को मौत की सजा दी गई थी. अपराध के समय वह किशोर था. जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ और संजय करोल की पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता की दोषसिद्धि बरकरार है. हालांकि सजा अलग रखी गई है. कोर्ट ने कहा कि चूंकि अपीलकर्ता की उम्र फिलहाल 20 साल से अधिक है. इसलिए उसे किशोर न्याय बोर्ड या किसी अन्य बाल देखभाल सुविधा या संस्थान में भेजने की कोई आवश्यकता नहीं थी. अपीलकर्ता न्यायिक हिरासत में है. उसे तुरंत रिहा किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के 15 नवंबर, 2018 के आदेश को संशोधित किया, जिसमें उसकी सजा और मौत की सजा की पुष्टि थी. शीर्ष अदालत ने युवक की अपील पर ये फैसला सुनाया है.
किशोर के जन्म प्रमाण पत्र पर टिप्पणी :कोर्ट ने कहा कि हमने ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट और भौतिक साक्ष्य का भी अवलोकन किया है. रिपोर्ट दस्तावेजी साक्ष्य के साथ-साथ वर्तमान प्रधानाध्यापिका, सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक, प्राथमिक संस्थान के पांच शिक्षकों और अपीलकर्ता के अभिभावक के मौखिक साक्ष्य पर आधारित है. यह भी ध्यान में रखना उचित होगा कि संस्था एक निजी संस्था नहीं है, बल्कि एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय है और इस अदालत को सरकारी सेवकों की गवाही पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं मिलता. संस्था द्वारा मार्कशीट के अलावा संस्था द्वारा जारी जन्म प्रमाण पत्र भी होता है. इसके अलावा पूछताछ में ट्रायल कोर्ट के समक्ष मूल रजिस्टर और अन्य दस्तावेज भी पेश किए गए.
अपीलकर्ता की जन्मतिथि पर कोई संदेह नहीं :कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की जन्म तिथि के संबंध में ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए निष्कर्ष की सत्यता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है. इसलिए हम ट्रायल कोर्ट की रिपोर्ट को स्वीकार करते हैं और मानते हैं कि अपीलकर्ता की आयु 15 वर्ष थी. बेंच ने कहा कि घटना की तारीख को साल 4 महीने और 20 दिन हो गए. शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की इस याचिका को खारिज कर दिया कि अभियुक्त को उसके किशोर होने के दावे का पता लगाने के लिए ओसिफिकेशन टेस्ट के लिए भेजा जाना चाहिए. क्योंकि ऑसिफिकेशन टेस्ट केवल उम्र का एक व्यापक मूल्यांकन देगा. यह सटीक उम्र नहीं दे सकता. प्लस या माइनस 1 से 2 साल के मार्जिन का एक तत्व भी है. किशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि कानून एक ऐसे व्यक्ति को पूर्ण कवरेज प्रदान करता है, जो अपराध की तिथि पर एक बच्चे के रूप में स्थापित हो जाता .