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जयस नेता हीरालाल अलावा से ईटीवी भारत की खास बातचीत, पांचवी अनुसूची को लेकर हुई चर्चा

जयस नेता और मनावर विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है. इस दौरान उन्होंने आदिवासियों के हक लिए पांचवी अनुसूची को प्रदेश में लागू करना बेहद जरूरी बताया.

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डॉ हीरालाल अलावा

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Published : Sep 8, 2020, 3:18 PM IST

धार।मध्य प्रदेश में संविधान की पांचवीं अनुसूची को लागू कराने का मामला अब हाईकोर्ट के संज्ञान में लाया गया है. जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ हीरालाल अलावा की याचिका पर सुनवाई करते हुए इंदौर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 2 हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है कि आखिर क्यों प्रदेश में पांचवी अनुसूची के प्रावधानों को लागू नहीं किया गया है. बता दें मनावर विधायक और आदिवासी नेता डॉ हीरालाल अलावा ने 28 अगस्त, 2020 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में इस सूची के प्रावधानों को लागू कराने को लेकर याचिका दायर की थी. आदिवासियों के हितों के संरक्षण और उनके विकास के लिए पांचवी अनुसूची को लेकर डॉ हीरालाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

जयस नेता डॉ हीरालाल अलावा

आजादी के 73 साल बाद भी लागू नहीं हुई 5वीं अनुसूची

उन्होंने कहा कि आज आजादी के 73 साल हो गए हैं, इतने सालों बाद भी मध्यप्रदेश के साथ कई अन्य आदिवासी बाहुल्य राज्यों में सरकारों ने आदिवासियों के विकास के लिए 5वीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू नहीं किया है. इन प्रावधानों के माध्यम से ही संविधान में आदिवासियों की सुरक्षा, संरक्षण और उनके विकास को सुनिश्चित किया गया है. इसीलिए प्रदेश में 5वीं अनुसूची लागू जल्द कराने के उद्देश्य को लेकर जयस ने जनहित याचिका लगाई थी. जिस पर 5 सितंबर 2020 को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के न्यायधीश सतीश शर्मा और शैलेंद्र शुक्ला ने संयुक्त रूप से सुनवाई की. प्रदेश सरकार नोटिस जारी कर के 2 हफ्ते में अभी तक प्रदेश में पांचवी अनुसूची लागू क्यों नहीं हुई इसको ले कर जवाब मांगा है.

5वीं अनुसूची से होगा आदिवासियों का विकास

जयस के राष्ट्रीय संरक्षक व मनावर विधायक डॉ हीरालाल अलावा ने बताया कि 5वीं अनुसूची के माध्यम से ही आदिवासियों का विकास संभव हो पाएगा.आज आदिवासियों से उनकी मर्जी के बिना उनकी जमीनें छीनी जा रहीं हैं. उनकी जमीनों पर बड़े-बड़े उद्योग धंधे स्थापित किए जा रहे हैं. आदिवासियों को मजबूरन अपने घरों से अपने क्षेत्रों से पलायन को मजबूर होना पड़ रहा है.यदि प्रदेश में जल्द ही 5वीं अनुसूची लागू नहीं की गई तो, आदिवासियों को उनका हक नहीं मिलेगा, इसलिए आदिवासियों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास के लिए 5वीं अनुसूची लागू होना बेहद जरूरी है.

कमलनाथ सरकार होती तो लागू हो गए होते इस सूची के प्रावधान

विधायक डॉ हीरालाल अलावा का कहना है कि हमने कमलनाथ सरकार के समय भी 5वीं अनुसूची प्रदेश में लागू करने की मांग रखी थी. अगर आज प्रदेश में कमलनाथ की सरकार होती तो निश्चित ही प्रदेश में पांचवी अनुसूची लागू करने की कार्रवाई की जाती है. प्रदेश में लोकतंत्र की हत्या हुई और बीजेपी ने कमलनाथ सरकार गिरा दी गई. जिससे कहीं ना कहीं प्रदेश में पांचवी अनुसूची लागू नहीं हो पाई.

उपचुनाव में कांग्रेस की होगी जीत, प्रदेश में लागू होगी 5वीं अनुसूची

डॉ हीरालाल अलावा ने कहा कि आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे. सभी 27 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी जीत दर्ज करेगी. प्रदेश में एक बार फिर से कमलनाथ की सरकार बनेगी. प्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनते ही 5वीं अनुसूची लागू करने का काम भी किया जाएगा.

5वीं अनुसूची की घोषणा

भारत के संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के तहत संवैधानिक प्रावधान के अनुसार, 'अनुसूचित क्षेत्र' को भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची के पैरा 6 (1) के अनुसार- 'ऐसे क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे राष्ट्रपति के आदेश द्वारा अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया गया हो'.एक राज्य के संबंध में "अनुसूचित क्षेत्रों" का विनिर्देश, उस राज्य के राज्यपाल के साथ परामर्श के बाद राष्ट्रपति के एक अधिसूचित आदेश द्वारा होता है.

भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची के अनुच्छेद 6 (2) के प्रावधानों के अनुसार, राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल के परामर्श से राज्य में किसी भी अनुसूचित क्षेत्र के क्षेत्र में वृद्धि कर सकते हैं; और किसी भी राज्य के संबंध में उन क्षेत्रों को पुनर्परिभाषित करने के लिए नए आदेश दे सकते हैं, जिसे अनुसूचित क्षेत्र घोषित किया जाना है.

किसी भी परिवर्तन, वृद्धि, कमी, नए क्षेत्रों का समावेश या "अनुसूचित क्षेत्रों" से संबंधित किसी भी आदेश को रद्द करने के मामले में भी यही लागू होता है।.वर्तमान में, आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित), छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान में अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए गए हैं.

  • जनजातीय आबादी की प्रधानता.
  • क्षेत्र की सघनता और उचित आकार.
  • प्रशासनिक इकाई जैसे जिला ब्लॉक या तालुक, और पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में क्षेत्र का आर्थिक पिछड़ापन.

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