धार । कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. धार के एक इंजीनियर अजीज खान ने कोरोना संक्रमण काल में एंबुलेंस की कमी को देखते हुए बाइक पर एंबुलेंस बना दी है. इस एंबुलेंस को बनाने में 25 से 40 हजार रुपए का खर्च आया है.
बाइक ambulance का idea कैसे आया?
कोरोना संक्रमण काल में लोगों को एंबुलेंस की खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. लोग घंटों एंबुलेंस के लिए इंतजार कर रहे हैं. शव को भी ले जाने के लिए परिजनों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसी बात से दुखी होकर धार के इंजीनियर अजीज खान ने शहर के लोगों को महामारी से लड़ने में अपना सहयोग देने की सोची.
बाइक एंबुलेंस : धार के इंजीनियर का कमाल जिलेभर से बड़े उद्योगपति और दानदाता महामारी से पीड़ित लोगों की मदद के लिए आगे आए हैं. कुछ लोग नगद पैसा दे रहे हैं, कोई भोजन की व्यवस्था कर रहा है. कोई ऑक्सीजन, मास्क तो कोई PPE किट के रूप में प्रशासन की मदद कर रहा है. धार के अजीज खान ने दो पहिया वाहन के लिये बाइक एम्बुलेंस तैयार की है.
आदिवासी अंचल के संकरे रास्तों में काफी काम की ambulance
बाइक एंबुलेंस में एक मरीज को आसानी से किसी भी जगह पहुंचकर ऑक्सीजन और प्राथमिक चिकित्सा देकर बचाया जा सकता है. इसे तैयार करने में महज दो दिन का समय लगा है. एक मरीज को लैटाकर ऑक्सीजन देते हुए आसानी से इसे चलाया जा सकता है. साथ ही बाइक पर एक व्यक्ति को भी बैठाया भी जा सकता है. आमतौर पर इस तरह के वाहन का उपयोग आदिवासी अंचल के संकरे रास्ते में किया जा सकता है, जहां सामान्य एम्बुलेंस पहुंचने में कठिनाई होती है.
बाइक एंबुलेंस में क्या है खास ?
बाइक एंबुलेंस को बनाने के लिए पुराने कलपुर्जों का इस्तेमाल किया गया है. इसमें बाइक के 2 टायर लगाए गए हैं. लोहे का एक फ्रेम बनाया गया है. जिस पर एक सीट लगाई गई है. इस पर मरीज को लेटाया जा सकता है. इसमें एक सिलेंडर भी लगाया गया है, जिससे मरीज को ऑक्सीजन दी जा सके. बाइक के साथ अटैच करने के लिए एक एंगल का इस्तेमाल किया गया. इसे आसानी से बाइक के साथ जोड़कर कहीं भी लाया-ले जाया जा सकता है.
संकट में साथ: साथियों की मौत से लगा था झटका, फिर चलाई ये अनोखी मुहिम
'हर गांव में हो बाइक एंबुलेंस'
अजीज खान का कहना है कि वो इसे जिला अस्पताल को निशुल्क भेंट करेंगे, ताकि इससे मरीजों को लाने-ले जाने में आसानी हो सके.अजीज खान चाहते हैं कि हर ग्राम पंचायत ऐसी बाइक एंबुलेंस अपने गांव में चलाए. बड़ी संख्या में ऐसी एंबुलेंस बनेगी तो खर्चा भी कम आएगा.