देवास। शासकीय सेटेलाइट शाला भोपापुरा जनशिक्षा केन्द्र आमलाताज संकुल शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय देवगढ़ तहसील हाटपीपल्या जिला देवास को संवारने का लक्ष्य दोनों शिक्षकों ने बनाया. कोई भी व्यक्ति जब सेवा में आता हैं तो वह उत्साह, आनंद से लबरेज होता है. लेकिन बड़ी बात उसी साहस, उत्साह, समर्पण, सामर्थ्य को बनाए रखने की होती है. जब परमानंद पिपलोदिया स्कूल को ज्वाइन करने पहुंचे तो देखा कि उनकी पहली पोस्टिंग जिस विद्यालय में हो रहीं हैं वहां न खिड़की हैं, न दरवाजे, जर्जर शौचालय, उखड़ा फर्श, सालों से रंगों को तरसती दीवारें, और स्कूल के दालान में बंधे पशु, घुड़े (गोबर) किसी का भी हौसला गिरा सकते थे. लेकिन बिना एक पल की देर लगाए शिक्षक परमानंद पिपलोदिया लग गए इस रंगविहीन तस्वीर को रंगीन बनाने में.
मिलकर बनाई योजना और हो गए शुरू
शिक्षकों ने बताया कि सबसे पहले दोनों शिक्षकों ने मिलकर योजना बनाई की इस स्कूल को संवारा जाए. उन्होंने पाया कि इस दुर्दशा के जिम्मेदार यहां के लोग भी कम नही हैं इसलिए तस्वीर बदलने के लिए उनका साथ जरूरी है, पहले ही दिन पहुंच गए गांव में लोगों से मिलने और समस्याओं के निराकरण के लिए उन्हें. साथ अपने साथ मिलाया. उन्हें जानकर आश्चर्य हुआ कि शिक्षा का स्तर शून्य से थोड़ा ही बड़ा है और लोग हिंदी भी नही बोलते हैं.
बच्चों को उपलब्ध कराई जरुरी चीजें
सभी लोगों के विचार जान दोनों शिक्षक शिक्षा का महत्व बताकर, विद्यालय आए. गांव की सबसे बड़ी कमी थी शिक्षा के प्रति नकारात्मक रवैया और गरीबी. पहला निदान परमानंद पिपलोदिया ने इसी समस्या का किया कि आज के बाद आपको सिर्फ बच्चों को विद्यालय भेजना हैं उनको शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी विद्यालय परिवार की. दूसरे ही दिन दोनों शिक्षक साथी मिलकर शैक्षणिक सामग्री लाए जिसमें कॉपियां, ड्राइंग बुक, स्केच पेन पैकेट, स्लेट, पेम,पेंसिल, इरेजर, शार्पनर पेन, कंपास और बैग शामिल था. इन सब सामग्रियों को पहली बार देख बच्चे नाच उठे और वादा किया अपने शिक्षकों से कि वह प्रतिदिन शाला आएंगे.
बच्चों के परिजनों को समझाया पढ़ाई का महत्व
दोनों शिक्षक बिना कोई विलंब किए प्रतिदिन शाला जाने लगे टाइम टेबल के अनुसार पढ़ाई होने लगी,बच्चे सीखने लगें, पालकों को संतुष्टि हुई और विश्वास जगा कि गांव का भविष्य सुरक्षित हाथों में है तो वह भी अब सहयोग को आगे आने लगे. मेहनत रंग लाने लगी. इनके जाने के बाद बच्चे फर्राटे से गिनती, पहाड़े, स्पेलिंग्स, सुनाने लगे. शैक्षणिक समस्या निपटी तो दूसरी समस्या थी पालकों द्वारा बच्चों को अपने साथ खेत पर ले जाना, बकरियों को चराने भेज देना या छोटे भाई बहनों को रखने के लिए घर ही रख लेना, इससे निपटने के लिए परमानंद पिपलोदिया और विक्रम सोलंकी प्रतिदिन अनुपस्थित बच्चों के घर जाने लगे पालकों को समझाकर, निवेदन कर और शिक्षा का महत्व बताकर उन्हें विद्यालय भेजने के उनके आग्रह काम करने लगे.