देवास। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में होली पर्व के एक सप्ताह पहले आने वाले हाट-बाजार को भगोरिया हाट के रूप में मनाया जाता है. गुरुवार को ओंकारा गांव में भगोरिया पर्व सम्पन्न हुआ. इसमें आदिवासी बारेला समाज के लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया. भगोरिया हाट में आसपास के गांव बड़ाखेत, भिलाई, सातल, जूना टाण्डा, उतावली, ककड़दी खिवनी से आए आदिवासी लोगों ने ढोल मांदल की थाप पर नृत्य किया.
भगोरिया हाट में ढोल-मांदल की थाप पर थिरके आदिवासी आदिवासियों का हाट
भगोरिया पर्व को लेकर आदिवासी युवाओं में उत्साह चरम पर दिखा. आदिवासी बारेला समाज के लोग अपनी पारंपरिक रंग-बिरंगी वेशभूषा में सजधज कर ओंकारा के हाट पहुंच. इनका नृत्य देखने के लिए आने जाने वाले लोग भी सड़क किनारे खड़े हो गे. 50-60 किलो वजन के ढोल लेकर अलग अलग टोलियों में आदिवासी पहुंचे. ढोल मांदल की थाप पर आदिवासियों ने जमकर नृत्य किया.
ढोल मांदल की थाप पर आदिवासियों ने जमकर नृत्य किया
भगोरिया हाट में आसपास के गांव बड़ाखेत, भिलाई, सातल, जूना टाण्डा, उतावली, ककड़दी खिवनी सहित आसपास के गांव से आदिवासी पहुंचे. एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर भगोरिया पर्व की बधाई दी.
आदिवासी महिलाओं से पांच स्टेप में जानिए हर्बल गुलाल बनाना
बाजार में ग्रामीणों ने मिठाइयों का स्वाद चखा. घर का जरूरी सामान खरीदा. बच्चो ने हाट में कुल्फी, जलेबी और मिठाइयों का मजा लिया. आदिवासी महिलाओं ने चांदी के आभूषण खरीदे. इस बार पिछले साल से ज्यादा लोग मेले में आए.
'भगाकर ले जाने की परंपरा नहीं'
आदिवासी समाज से आने वाले तेलम सिंह मोरे बताते हैं, कि भगोरिया पर्व का आदिवासी समाज मे बड़ा महत्व है. होली पूजन की सामग्री खरीदने के लिए इनरे पूर्वज बाजार में आया करते थे. यहां एक दूसरे के रिश्तेदार भी मिलते थे. उसी परंपरा को बढ़ाते हुए आज भी भगोरिया पर्व मनाया जा रहा है. भगोरिया पर्व के बारे कुछ लोगों ने अफवाह फैलाई है, कि भगोरिया पर्व में युवक-युवती एक दूसरे को पसंद करके भागकर शादी करते हैं. तेलम सिंह कहते हैं कि ये पूरी तरह से झूठ है. फाल्गुन के महीने में हमारे समाज मे शादी नही होती है. भगोरिया पर्व होली का सामान खरीदने के लिए कई पीढ़ियों से मनाते हुए आ रहे हैं.