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Chaitra Navratri 2023: नवरात्रि पर सजा देवी पीतांबरा का दरबार, जानिए क्यों कहा जाता है 'सत्ता की देवी'

पूरे देश में दतिया की ख्याति प्रसिद्ध पीतांबरा देवी पीठ मंदिर की वजह से है. मां पीतांबरा को बगलामुखी देवी के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है मां को पीत वस्त्र पसंद हैं इसलिए इन्हें पीतांबरा देवी के नाम से भी जाना जाता है. हर शनिवार को मंदिर में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं.

bagalamukhi Pitambara mandir datia
नवरात्रि पर सजा देवी पीतांबरा का दरबार

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Published : Mar 22, 2023, 5:33 PM IST

दतिया। मध्य प्रदेश के दतिया में मौजूद पीतांबरा देवी का मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, मां पीतांबरा को सियासत की देवी भी कहा जाता है. चैत्र नवरात्रि के मौके पर देवी पीतांबरा का दरबार सज गया है. दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आ रहे हैं. मंदिर में आने वाले भक्तों की हर मुराद को मां पूरी करती हैं. पीतांबरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत (जिन्हें लोग श्रीस्वामीजी महाराज कहकर पुकारते थे) ने 1935 में दतिया के राजा शत्रुजीत सिंह बुन्देला के सहयोग से की थी. कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था, यहां वनखण्डेश्वर महादेव का एक स्थान था जिसे महाभारत कालीन माना जाता है. कहा जाता है इस महादेव मंदिर की स्थापना कौरवों पांडवों के गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने कराई थी.

नवरात्रि पर सजा देवी पीतांबरा का दरबार

संत ने की थी मंदिर की स्थापना: श्री स्वामी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था, कोई नहीं जानता कि वह कहां से आये थे, या उनका नाम क्या था. न ही उन्होंने इस बात का खुलासा किसी से किया. हालांकि वे परिव्राजकाचार्य दंडी स्वामी थे, और एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रह्मचारी संत के रूप में दतिया में अधिक समय तक रहे. वह कई लोगों के लिए एक आध्यात्मिक प्रतीक थे और अभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके साथ जुड़े हुए हैं. उन्होंने मानवता और देश दोनों के संरक्षण और कल्याण के लिए कई अनुष्ठानों और साधनाओं का नेतृत्व किया. गढ़ी मालेहड़ा के पं. श्री गया प्रसाद नायक जी (बाबूजी) स्वामीजी के ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं. पूज्य स्वामीजी महाराज और बाबूजी के गुरुजी गुरुभाई थे. स्वामीजी प्रकांड विद्वान व प्रसिद्ध लेखक थे, उन्होंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं.

माँ पीतांबरा, शत्रु विनाशिनी देवी हैं:माँ पीतांबरा को सियासत की देवी कहा जाता है. इसी कारण से देश के तमाम सियासतदार यहां आकर दर्शन करते हैं. मंदिर परिसर श्री पीतांबरा पीठ, बगलामुखी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जो 1920 के दशक में श्रीस्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया था. उन्होंने आश्रम के भीतर धूमावती देवी के मंदिर की भी स्थापना की थी, जो कि देश भर में एकमात्र है. धूमावती और बगलामुखी दस महाविद्याओं में से दो हैं. इसके अलावा, आश्रम के बड़े क्षेत्र में भगवान परशुराम, महाबली हनुमान, श्री कालभैरव, बटुक भैरव, गणेशजी और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर फैले हुए हैं.

मंदिर में मौजूद है संस्कृत पाठशाला: मंदिर परिसर में ही संस्कृत पुस्तकालय है जो श्री स्वामीजी द्वारा स्थापित किया गया था, और आश्रम द्वारा अनुरक्षित किया जाता है. आश्रम के इतिहास और विभिन्न प्रकार के साधनाओं और तंत्रों के गुप्त मंत्रों की व्याख्या करने वाली पुस्तकें भी मिलती हैं. पीठ की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह संस्कृत भाषा का प्रकाश छोटे बच्चों तक फैलाने का प्रयास करती है, जो निशुल्क है. पीठ परिसर में संस्कृत पाठशाला भी है, जहां निशुल्क रूप से विद्यार्थी विद्या ग्रहण करते हैं.

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आश्रम में वर्षों से संस्कृत वाद-विवाद हो रहा:माँ पीतांबरा, बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है. पीताम्बरा पीठ मंदिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है. सन् 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था. उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे. भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था. तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा. उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले. स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक 51 कुंडीय महायज्ञ करने की बात कही. यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया. यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था, उसी समय 'संयुक्त राष्ट्र संघ' का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है, और 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं. मंदिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है. इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी यहां गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ कराए गए थे.

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