दतिया। मध्य प्रदेश के दतिया में मौजूद पीतांबरा देवी का मंदिर पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, मां पीतांबरा को सियासत की देवी भी कहा जाता है. चैत्र नवरात्रि के मौके पर देवी पीतांबरा का दरबार सज गया है. दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आ रहे हैं. मंदिर में आने वाले भक्तों की हर मुराद को मां पूरी करती हैं. पीतांबरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत (जिन्हें लोग श्रीस्वामीजी महाराज कहकर पुकारते थे) ने 1935 में दतिया के राजा शत्रुजीत सिंह बुन्देला के सहयोग से की थी. कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था, यहां वनखण्डेश्वर महादेव का एक स्थान था जिसे महाभारत कालीन माना जाता है. कहा जाता है इस महादेव मंदिर की स्थापना कौरवों पांडवों के गुरु द्रोण के पुत्र अश्वत्थामा ने कराई थी.
संत ने की थी मंदिर की स्थापना: श्री स्वामी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था, कोई नहीं जानता कि वह कहां से आये थे, या उनका नाम क्या था. न ही उन्होंने इस बात का खुलासा किसी से किया. हालांकि वे परिव्राजकाचार्य दंडी स्वामी थे, और एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रह्मचारी संत के रूप में दतिया में अधिक समय तक रहे. वह कई लोगों के लिए एक आध्यात्मिक प्रतीक थे और अभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके साथ जुड़े हुए हैं. उन्होंने मानवता और देश दोनों के संरक्षण और कल्याण के लिए कई अनुष्ठानों और साधनाओं का नेतृत्व किया. गढ़ी मालेहड़ा के पं. श्री गया प्रसाद नायक जी (बाबूजी) स्वामीजी के ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं. पूज्य स्वामीजी महाराज और बाबूजी के गुरुजी गुरुभाई थे. स्वामीजी प्रकांड विद्वान व प्रसिद्ध लेखक थे, उन्होंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं.
माँ पीतांबरा, शत्रु विनाशिनी देवी हैं:माँ पीतांबरा को सियासत की देवी कहा जाता है. इसी कारण से देश के तमाम सियासतदार यहां आकर दर्शन करते हैं. मंदिर परिसर श्री पीतांबरा पीठ, बगलामुखी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जो 1920 के दशक में श्रीस्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया था. उन्होंने आश्रम के भीतर धूमावती देवी के मंदिर की भी स्थापना की थी, जो कि देश भर में एकमात्र है. धूमावती और बगलामुखी दस महाविद्याओं में से दो हैं. इसके अलावा, आश्रम के बड़े क्षेत्र में भगवान परशुराम, महाबली हनुमान, श्री कालभैरव, बटुक भैरव, गणेशजी और अन्य देवी-देवताओं के मंदिर फैले हुए हैं.