दमोह। कुण्डलपुर धाम के धार्मिक महत्व को देखते हुए यहां विश्व का सबसे ऊंचा जैन मंदिर बन रहा है. कुंडलपुर में बड़े बाबा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का नागर शैली में दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बनाया जा रहा है. जो अपनी दिव्यता और भव्यता के चलते अभी से लाखों भक्तों की श्रद्धा का केंद्र बनता जा रहा है. कुण्डलपुर के इस भव्य जैन मंदिर का कार्य पिछले 16 सालों से जारी है. इस मंदिर में 12 लाख घन मीटर पत्थरों का उपयोग किया जा चुका है. इस मंदिर में बड़े बाबा की तकरीबन एक हजार साल पुरानी प्रतिमा स्थापित की जा रही है.
लोहा,सरिया और सीमेंट के उपयोग के बिना बन रहा है मंदिर, 189 फीट का है शिखर
दमोह जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर स्थित जैन तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर में बड़े बाबा के मंदिर को भव्य तौर पर बनाया जा रहा है. 500 फीट ऊंची पहाड़ी पर बन रहे इस मंदिर का शिखर 189 फीट ऊंचा है. कहा जा रहा है की दुनिया में अब तक नागर शैली में इतनी ऊंचाई वाला मंदिर नहीं है. मंदिर की ड्राइंग डिजाइन अक्षरधाम मंदिर की डिजाइन बनाने वाले सोमपुरा बंधुओं ने तैयार की है. मंदिर की खासियत है कि इसमें लोहा, सरिया और सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है. इसे गुजरात और राजस्थान के लाल-पीले पत्थरों से तराशा गया है. एक पत्थर को दूसरे पत्थर से जोडऩे के लिए भी खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है.
पूरे निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होंगे
189 फीट ऊंचे इस जैन मंदिर के निर्माण पर लगभग 600 करोड़ रुपए खर्च होने हैं. जिसमें से करीब 400 करोड़ रुपए अबतक खर्च भी हो चुके हैं. पत्थरों से बने इस मंदिर पर दिलवाड़ा और खजुराहो की तर्ज पर शानदार नक्काशी की गई है. कुण्डलपुर के इस भव्य जैन मंदिर का कार्य पिछले 16 वर्षों से जारी है. इस मंदिर में 12 लाख घन मीटर पत्थरों का उपयोग किया जा चुका है. इस मंदिर में मुख्य शिखर, नृत्य मंडप, रंग मंडप सहित अनेक प्रकार के भव्य स्थल का निर्माण हुआ है.
63 मंदिर हैं स्थापित
प्राचीन स्थान कुंडलपुर को सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है. यहां 63 मंदिर हैं जो 5वीं, 6वीं शताब्दी के बताए जाते हैं. क्षेत्र को 2,500 साल पुराना बताया जाता है. कुण्डलपुर सिद्ध क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है. यहां 1,500 साल पुरानी पद्मासन श्री 1008 आदिनाथ भगवान की प्रतिमा है, जिन्हें बड़ेबाबा कहते हैं.
2500 साल पुराना नाता है भगवान महावीर का
भगवान महावीर के 500 शिष्य हुए हैं. जिनमें इंद्रभूति गौतम के भट्टारक ने भ्रमण किया था. भट्टारक सुरेंद्र कीर्ति ने कुंडलगिरी क्षेत्र से भगवान आदिनाथ की प्रतिमा खोजी थी. तब से यह माना जा रहा है कि भगवान महावीर का समवशरण 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व कुंडलपुर आया था. इस इलाके की पहाडियां कुंडली आकार में होने के कारण पहले इसका नाम कुंडलगिरी था. बाद में धीरे-धीरे इसका नामकरण कुंडलपुर पड़ गया, जो अब सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र है. यह क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है.