दमोह। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, दुनिया में ऐसे कई बदलाव हुए जो किसी को रास आए तो किसी को नहीं. दुनिया में बदलाव को कौन रोक सकता है भला, लेकिन बदलाव के बाद भी यदि कुछ जिंदा है तो वो हैं यादें, जो या तो कहानियों के तौर पर किताबों में दर्ज हैं या फिर वो निशान जो खंडहरों में तब्दील हो गए हैं. कई राजा आए और चले गए, लेकिन आज भी कई महल उन राजाओं की याद दिलाते हैं. ऐसा ही एक महल जिले के हटा में सुनार नदी के किनारे स्थित है. इस महल को रंगमहल के नाम से जाना जाता है. फौलादी दीवारें, बुलंद दरवाजे और किले में दफ्न की किस्से रंगमहल की दास्ता सुना रहे हैं. सदियां गुजरीं लेकिन इस रंगमहल की तस्वीर आज भी वैसी ही है.
पहले जहां रंगमहल के भीतर घुंघरुओं की आवाज गूंजा करती थी, वहां अब सन्नाटा पसरा हुआ है. बताया जाता है कि इस महल की रानियां संस्कृति का मंच करती थीं. रंगमहल गोंडवंश के राजाओं के किलों में से एक है, जो इस क्षेत्र की गाथा बयान करता है. एक समय रंगमहल पर राजा हट्टेशाह का शासन हुआ करता था. इस किले की श्रंखला गोंड वंश के राजाओं ने बनाई थी, बाद में इस किले को महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव को सौंप दिया था. वक्त के साथ-साथ इस किले के राजा भी बदलते गए. रंगमहल, हटा शहर के दाहिने किनारे बसा हुआ है. स्थानीय लोगों को कहना है कि फकीर मलंगशाह की दुआ ने मुसलमानी फौजों को हटा दिया था. इसी वजह से इसका नाम हटा पड़ा, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि गोंड राजा हट्टे शाह ने हटा बसाया था और उसी के नाम से इसका नाम हटा पड़ा.