सागर।रानी दुर्गावती के अदम्य साहस और वीरता भरे इतिहास का साक्षी और कलचुरी साम्राज्य की स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना कहे जाने वाले 10वीं शताब्दी के नोहलेश्वर मंदिर से अपनी पहचान कायम करने वाली जबेरा विधानसभा एक ऐसी विधानसभा है, जिसका 66 साल के इतिहास में तीन बार 1952,1957 और 2008 में नाम बदला गया. 1952 में हुए विधानसभा चुनाव के समय विधानसभा क्षेत्र का नाम तेंदूखेड़ा था. महज 5 साल बाद 1957 में विधानसभा का नाम तेंदूखेडा से नोहटा कर दिया गया. करीब 50 साल बाद 2008 में हुए परिसीमन में नोहटा विधानसभा का नाम बदलकर जबेरा विधानसभा क्षेत्र हो गया. जबेरा विधानसभा क्षेत्र के मतदाता जातीय समीकरण के आधार पर हार जीत का फैसला करते हैं. यहां आदिवासी और दलित मतदाताओं के अलावा लोधी और यादव मतदाता जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जबेरा विधानसभा एक ऐसी विधानसभा है, जिसे कोई राजनीतिक दल अपने गढ़ के रूप में परिभाषित नहीं कर सकता है. हालांकि इस विधानसभा के नाम ये भी रिकार्ड है कि ईसाई समुदाय के दहाई वोट ना होने के बावजूद रत्नेश सालोमन यहां से लगातार 15 साल विधायक रहे. फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और कांग्रेस आदिवासी और दलित और यादव वोट बैंक के सहारे आगामी चुनाव में जीत हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है.
जबेरा विधानसभा का इतिहास: जबेरा विधानसभा सीट एक ऐसी विधानसभा है, जो जबेरा के अलावा तेंदूखेड़ा और नोहटा तीन कस्बों में फैली है. ये इलाका रानी दुर्गावती के अदम्य साहस और वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है. रानी दुर्गावती का विवाह 1542 में गोंडवाना शासक संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से हुआ था. पति की मौत के बाद रानी दुर्गावती ने राज्य की कमान संभाली. जबेरा विकासखंड मुख्यालय से 5 किमी की दूरी पर रानी दुर्गावती ने सिंगौरगढ़ किले का निर्माण कराया. जिसे अपनी पहली राजधानी बनाया था. सिंगौरगढ़ किले में रानी महल, हाथी दरवाजा, किले के अंदर जलाशय और कई सुरंगे हैं. रानी दुर्गावती ने गोंडवाना राज्य का वीरता पूर्वक संचालन 15 साल तक किया. अपने शासनकाल में उन्होंने करीब 50 युद्ध लडे़ और 3 बार मुगल आक्रमणकारियों को हराया. इसके अलावा ये इलाका कलचुरी साम्राज्य की स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने नोहटा से एक किमी दूर नोहलेश्वर मंदिर के लिए जाना जाता है. जिसका निर्माण 950-1000 ईस्वी में चालुक्य वंश के कलचुरी राजा अवनी वर्मा की रानी ने कराया था.
जबेरा विधानसभा का चुनावी इतिहास:जबेरा विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां की चुनावी हार जीत जातियां तय करती है. खासकर आदिवासी, लोधी, यादव और दलित मतदाता यहां के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. ये सीट एक तरह से ज्यादातर कांग्रेस के कब्जे में रही है, लेकिन फिलहाल यहां भाजपा का कब्जा है. भाजपा के धर्मेन्द्र लोधी यहां से 2018 में चुनाव जीते थे. चुनाव में दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और बीजेपी जातीय समीकरणों के आधार पर प्रत्याशी चयन करते हैं.
2008 विधानसभा चुनाव: 2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के रत्नेश सालोमन ने यहां से जीत हासिल की थी. उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को एक कडे़ मुकाबले में करीब दो हजार वोटों से हराया था. 2008 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के रत्नेश सालोमन के लिए 41 हजार 230 वोट मिले थे, तो वहीं बीजेपी के दशरथ लोधी के लिए 39 हजार 380 वोट मिले थे. इस तरह रत्नेश सालोमन ने 1 हजार 850 वोट से जीत हासिल की थी.
2013 विधानसभा चुनाव: 2008 के परिसीमन के बाद जबेरा विधानसभा के जातीय समीकरण तब्दील हो जाने के कारण 2013 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने लोधी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. भाजपा ने जहां दशरथ सिंह पर फिर भरोसा जताया था, वहीं कांग्रेस ने प्रताप सिंह लोधी को मैदान में उतारा था. इस चुनाव में भाजपा के दशरथ सिंह को 56 हजार 615 वोट मिले थे. वहीं कांग्रेस के प्रताप सिंह को 68 हजार 511 वोट मिले थे. इस तरह कांग्रेस के प्रताप सिंह लोधी 11 हजार 896 मतों से चुनाव जीत गए थे.