दमोह।एक समय इस मंदिर की अलग ही रौनक थी. चारों तरफ पत्थर से बनाए हुए परकोटे थे और बीचोंबीच भगवान राम जानकी और लक्ष्मण जी मंदिर में विराजमान थे. मंदिर के ठीक सामने अनाज का भंडार गृह था, जो अब टूट चुका है. मंदिर के बाई तरफ एक विशाल हाथी सार थी. उसके आगे लकड़ी का एक विशाल नक्काशी दार दरवाजा लगा हुआ है. उसी दरवाजे से हाथी अंदर प्रवेश किया करते थे. इसीलिए उसका नाम हाथी दरवाजा पड़ा. इस नक्काशीदार दरवाजे में कई किलो वजन के पीतल के फूल लगे हुए हैं.
पांच समाधियां वर्षों पुरानी :मंदिर की मंदिर के पीछे पांच नागा साधुओं की समाधि हैं. उसी से लगी हुई एक विशाल बावड़ी है. खाली जमीन पर बगीचा है. करीब 3 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस परकोटे की कई दीवारें गिर चुकी हैं. मंदिर के दाएं तरफ एक अखाड़ा बना हुआ है. जिसमें नागा साधु रियाज किया करते थे. अखाड़े के बाहर सिंदूर से रंगे हुए लकड़ी के दो मुगदर रखे हुए हैं. यहां पर एक पानी की हौदी भी बनी हुई है, जो एक ही पत्थर को काटकर बनाई गई है.
कुंभ से आते थे नागा साधु :12 वीं सदी में जब इस धर्म क्षेत्र का निर्माण किया गया था, तब नागा साधु यहीं पर रुका करते थे. कुंभ से आने जाने वाले नागा साधुओं के लिए यह स्थान आरामगाह था. कई साधु तो ऐसे भी हुए हैं जिनकी यह कर्मभूमि भी बना और यहीं पर उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली. मंदिर में रखी हुई भगवान राम की प्रतिमा काले पत्थर पर बनाई गई है. आंखें बहुत ही मनोहारी और मुख शांत व प्रसन्नचित्त मुद्रा में है. एक हाथ में धनुष बाण है तो दूसरा हाथ खुला हुआ है. जब आरंभ में मंदिर का निर्माण किया गया तब केवल प्रभु राम की ही प्रतिमा थी. उसके बाद कालांतर में माता जानकी और लक्ष्मण जी को भी विराजमान कर दिया गया. मंदिर निर्माण की समय भगवान को शुद्ध घी के पकवानों का भोग लगता था. हजार बरसों से चली आ रही परंपरा आज भी जीवित है. आज भी भगवान को गाय के घी से बने पकवानों का ही भोग लगाया जाता है.