दमोह। दमोह के एक छोटे से गांव में बने गोबर के दिए दिल्ली को भी रोशन कर रहे हैं. वोकल फॉर लोकल के स्वदेशी नारे के साथ ये अब चाइना के दीयों को टक्कर देकर उनके विकल्प के रूप में भी उभर रहे हैं.
वोकल फॉर लोकल की अनूठी मिसाल
दमोह मुख्यालय से मात्र 6 किलोमीटर दूर ग्राम तिंदोनी कभी भिक्षावृत्ति के लिए मशहूर था. यहां पर ज्यादातर नट जाति के लोग रहते हैं. उनका पेशा यही था कि वह करतब दिखाकर, भीख मांग कर या दान मांग कर अपने परिवार का गुजारा करते थे. लेकिन पिछले दो-तीन सालों में ही गांव में कुछ ऐसा हुआ कि भीख मांगने वाले बच्चे अब समाज की मुख्यधारा से जुड़ कर स्वावलंबी बन रहे हैं. यहां पर युवा सरपंच ने भिक्षावृत्ति करने वाले बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए एक नया काम शुरु किया और बच्चों को स्वावलंबी बनाने के लिए उसमें जोड़ दिया.
कटोरा छोड़ हाथों ने सीखा हुनर
यहां के करीब 60 परिवार अब गाय के गोबर से दीयों, शुभ लाभ की आकृतियों, गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती जी की प्रतिमा सहित विभिन्न प्रकार की सामग्रियों का निर्माण कर रहे हैं. यहां के सरपंच सोमेश गुप्ता बताते हैं कि जब उन्होंने 6 साल पहले यहां की बागडोर संभाली तो समझ में ही नहीं आया कि इन बच्चों को आख़िर भिक्षावृत्ति और करतब दिखाने के काम से कैसे दूर किया जाए. मां बाप भी बच्चों से भीख मंगवाने में झिझकते नहीं थे. तब सोमेश के मन में यह विचार आया कि क्यों ना यहां पर कोई निर्माण इकाई डाली जाए, जिससे लोगों को रोजगार भी मिल सके और आमदनी भी होने लगे.सोमेश ने पहले सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे, लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो अपने ही खर्च से कुछ मशीनें लाए. बच्चों को गोबर से दीये बनाने की ट्रेनिंग दी. इसके बाद तो धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए. अब इस काम में 60 परिवार के बच्चे अपना योगदान दे रहे हैं.