दमोह। कांग्रेस से अजय टंडन को टिकट मिलने के बाद अब तस्वीर कुछ साफ हो गई है. इसके साथ ही कुछ लोगों के अरमानों पर पानी भी फिर गया है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस ने लोधी को छोड़कर अजय टंडन को प्रत्याशी बनाया है. समीकरणों पर एक नजर
अपने जमाने में कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे प्रभुनारायण टंडन के भतीजे और चंद्रनारायण टंडन के बेटे अजय टंडन पिछले कुछ वर्षों में पूरी कांग्रेस के केंद्र बिंदु और ध्रुव बनकर उभरे हैं. वह पूरे परिवार के राजनीतिक उत्तराधिकारी बन गए हैं, ऐसा कहा जाए तो गलत नहीं होगा. इसके पूर्व अजय टंडन को कांग्रेस से दो बार विधानसभा का टिकट मिल चुका है, लेकिन दोनों ही बार उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा. लगभग 65 वर्षीय टंडन का यह आखिरी चुनाव माना जा रहा है. आखरी इसलिए क्योंकि वह दो बार चुनाव हार चुके हैं. अगर वे विजयी होते हैं तो उनके लिए आगे का रास्ता सरल हो जाएगा. यदि वह चुनाव हारते हैं तो यह उनका आखिरी चुनाव बनकर रह जाएगा.
अजय टंडन टिकट लेने में तो कामयाब हो गए लेकिन कई ऐसे नेता हैं, जिनके सपने चकनाचूर हुए हैं. खासतौर से लोधी नेता जो टिकट के दावेदार बनकर उभरे थे. उनके साथ तो कमोबेश ऐसा ही हुआ है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस ने इस बार किसी लोधी पर भरोसा नहीं जताया? कहते हैं दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, यही कांग्रेस के साथ हुआ है. इसलिए कांग्रेस ने लोधी प्रत्याशी से परहेज किया है.
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लोधी को तीन बार लगाया तिलक
कांग्रेस ने लोधी नेताओं को हमेशा सर आंखों पर बिठाया है, लेकिन कांग्रेस को बदले में उनसे उपेक्षा ही मिली है. तिलक सिंह लोधी पर कांग्रेस ने पहली बार 1999 में लोकसभा चुनाव में दांव खेला था. भाजपा की ओर से डॉ रामकृष्ण कुसमरिया मैदान में थे. कुसमरिया को 246909, तिलक सिंह को 233190 वोट मिले थे. महज 13000 के अंतर से कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा था. उसके बाद 2004 में एक बार फिर कांग्रेस ने तिलक सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया. भाजपा से तत्कालीन नोहटा विधायक चंद्रभान सिंह मैदान में थे. उन्होंने तिलक सिंह को भारी मतों से पराजित किया था. इस चुनाव में भाजपा को 271869 और कांग्रेस को 177274 मत मिले थे. दो चुनाव हारने के बाद भी तिलक सिंह को तीसरा मौका 2013 में विधानसभा चुनाव में बड़ा मलहरा से दिया गया. बीजेपी प्रत्याशी रेखा यादव ने 41789 मत प्राप्त कर तिलक सिंह को पराजित किया. इस चुनाव में तिलक सिंह को 40265 वोट मिले थे. तीन बार टिकट मिलने के बाद भी तिलक सिंह ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और भाजपा में चले गए.
तीन बार टिकट मिला पर भरोसा तोड़ दिया
तिलक सिंह लोधी की तरह भाजपा के खाते से पहले जिला पंचायत अध्यक्ष फिर विधायक और उसके बाद सांसद चुने गए चंद्रभान सिंह लोधी को भी कांग्रेस ने तीन बार टिकट देकर उन्हें मैदान में उतारा. लेकिन तीनों बार उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा. मनमोहन सरकार के खिलाफ भाजपा द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में क्रॉस वोटिंग करके भाजपा से निष्कासित हुए चंद्रभान सिंह को कांग्रेस ने अपने पाले में शामिल कर लिया और 2008 के विधानसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया. भाजपा के जयंत मलैया ने 50881 मत प्राप्त किए इस चुनाव में चंद्रभान को 50351 मत मिले. महज 130 वोटों के अंतर से चंद्रभान चुनाव हार गए. कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में चंद्रभान सिंह को एक बार फिर मैदान में उतारा. इस बार उनका मुकाबला भाजपा के शिवराज लोधी से था. भाजपा ने 302637 वोट हासिल कर चंद्रभान सिंह को हरा दिया. चंद्रभान को 231796 मत प्राप्त हुए. 2013 में विधानसभा चुनाव में कार्यकर्ताओं के भारी विरोध के बाद भी तीसरी बार फिर कांग्रेस ने चंद्रभान को टिकट दिया. बीजेपी के जयंत मलैया को 72534 और कांग्रेस के चंद्रभान लोधी को 67581 मत प्राप्त हुए. उसके बाद चंद्रभान भी तिलक सिंह की तरह पार्टी छोड़कर वापस भाजपा में चले गए.
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एक परिवार से दो को दिया टिकट
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर लोधियों पर भरोसा जताया और एक ही परिवार के 2 सदस्यों को टिकट दे दिए. छतरपुर की बड़ा मलहरा सीट से प्रद्युम्न सिंह लोधी और दमोह सीट से उनके चचेरे भाई राहुल सिंह लोधी को अपना प्रत्याशी बनाया. प्रदुम्न लोधी ने भाजपा की रेखा यादव को पराजित किया था. कांग्रेस को 67184 व भाजपा को 41779 प्राप्त हुए थे. इसी तरह राहुल लोधी ने भाजपा के कद्दावर नेता और वित्त मंत्री जयंत मलैया को शिकस्त देकर विजयश्री का वरण किया था. राहुल को 78997 व जयंत मलैया को 78199 मत हासिल हुए थे.
क्या सिला मिला कांग्रेस को ?
कांग्रेस ने इन तीनों के अलावा प्रताप सिंह लोधी को भी तीन बार टिकट दिया. जिसमें प्रताप सिंह लोधी एक बार जबेरा से विधायक चुने गए दूसरी बार 2018 में चुनाव हार गए लेकिन कांग्रेस ने उन्हें तीसरी बार 2019 में लोकसभा का टिकट दिया. उसमें भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. कांग्रेस ने लोधी समाज के पांच नेताओं को 11 बार टिकट दिए. जिसमें से चार लोधी नेता पलटी मार कर भाजपा में चले गए. बार-बार छल होने के कारण कांग्रेस ने इस चुनाव में लोधी का बाय कॉट कर के अजय टंडन को अपना प्रत्याशी बनाया है. पांच लोधी नेताओं को 11 बार कांग्रेस ने दिए टिकट चार ने दिया धोखा. कांग्रेस ने इस बार लोधी पर नहीं जताया भरोसा.