दमोह।ऐतिहासिक एवं गौरवशाली इतिहास को अपने में समेटे दमोह जिला धर्म क्षेत्र में बहुत ही अनूठा और अलौकिक है. यहां कई ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें हैं, जो वाकई अपने आप में बेमिसाल और बेजोड़ हैं. ऐसा ही एक मंदिर नगर के फुटेरा तालाब के समीप स्थित है. भारत दुर्गे देवालय (Bharat Durge Devalaya) नाम से विख्यात इस मंदिर में विशुद्ध रूप से मिट्टी की बनी हुई 170 साल प्राचीन प्रतिमा आज भी स्थित है. यह मंदिर भक्तों के लिए साल में दो बार 15-15 दिन के लिए खोला जाता है. अश्विन एवं चैत्र नवरात्र में प्रतिपदा तिथि को मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं.
1851 में हुई थी मंदिर की स्थापना
फुटेरा वार्ड स्थित भारत दुर्गे देवालय में मिट्टी से बनी हुई उत्तर मुखी 10 भुजा वाली सिंह वाहिनी माता की प्रतिमा उस समय स्थापित की गई थी जब देश गुलाम था. तब यहां पर अंग्रेजों का राज था. मंदिर के पुजारी डॉक्टर नरेंद्र भारत बताते हैं कि 1851 में इस प्रतिमा का निर्माण हटा में किया गया था. उस समय किसी तरह की कोई विशेष सुविधा और यातायात के साधन नहीं थे. इसलिए इसे बैलगाड़ी से लाया गया था. बाघ पर सवार मां के दाएं-बाएं उनकी गणिकाएं खड़ी हुई है.
रात्रि में होते है मां के अनुष्ठान
पुजारी ने बताया कि शूल से राक्षस का वध करती माता रानी की यह जिले में इकलौती मूरत है. प्रतिमा की स्थापना उनके प्रथम सेवक देवी प्रसाद भारत और भागीरथ प्रसाद भारत ने की थी. स्थापना काल से ही माता की सेवा भारत परिवार करता आ रहा है. अब यह चौथी पीढ़ी है, जो माता की सेवा कर रही है. उत्तर मुखी देवी के पूजन का विधान अलग है. उनका पूजन रात्रि में ही किया जाता है. सुबह-शाम आरती तो होती है, लेकिन अनुष्ठान रात्रि में होते हैं.
170 साल से नहीं हुआ प्रतिमा में बदलाव
इस मिट्टी की प्रतिमा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि 170 वर्ष से इसमें दूसरी बार रंग रोगन नहीं किया गया. फिर भी माता रानी के चेहरे पर उनके तेज, उनके आभामंडल में किसी तरह की कोई कमी दिखाई नहीं देती है. प्रतिमा कहीं से भी खंडित भी नहीं है. यह भी अपने आप में एक अनूठी बात है, क्योंकि मिट्टी की प्रतिमाएं अक्सर नमी पकड़कर भी भिसकने लगती हैं, लेकिन इस प्रतिमा में ऐसा कुछ भी दृश्य परिलक्षित नहीं होता है.