दमोह। किसी भी बच्चे के लिए उसका शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाला स्कूल सबसे अहम होता है, जहां वह अपने भविष्य की नई इबारत लिखना शुरू करता है, लेकिन जब उसी मंदिर की इमारत बदहाल हालत में हो तो ऐसे में बच्चे कैसे शिक्षा हासिल करेंगे. दमोह के जबेरा में शिक्षा व्यवस्था और इमारत बदहाली का शिकार हो चुकी हैं. इस स्कूल की हालत इतनी जर्जर है कि बच्चे यहां बैठने से भी डरते हैं. लिहाजा स्कूल के ये हालात कभी भी किसी हादसे को न्योता दे सकते हैं.
सरकार के दावों से जमीनी हकीकत एकदम उलट
प्रदेश में एक तरफ सीएम राइस, मॉडल और एक्सीलेंस जैसे स्कूलों के लिए सरकार करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है तो दूसरी ओर यह हाल है की ग्रामीण अंचलों में बच्चे जर्जर हो चुके स्कूल भवनों में बैठने से डर रहे हैं. स्कूल की हालत ऐसी है कि बच्चों को पढ़ाई से नहीं बल्कि जर्जर हो चुके स्कूल भवन से डर लगता है. हाल यह है कि नया स्कूल भवन बनना तो दूर की बात है जर्जर हो चुके पुराने स्कूलों की मरम्मत भी नहीं हो पा रही है. सरकार के दावों से जमीनी हकीकत एकदम उलट है.
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किसी भी वक्त हो सकता है बड़ा हादसा
दमोह जिले के जबेरा जनपद के ग्राम परस्वाहा का प्राथमिक शाला का भवन इतना जर्जर हो गया है कि बच्चे इसमें बैठने से डरते हैं. यहां तक कि कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना ही बंद कर दिया है. स्कूल के एक कमरे की दीवारें टूटी हैं तो दूसरे कमरे में छप्पर नहीं है. प्राथमिक शाला के लिए कई बार अतिरिक्त कक्ष बनवाए गए लेकिन सभी जर्जर अवस्था में पहुंच गए हैं. किसी दिन दीवारें या छप्पर न गिर जाए इस डर से बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया हैं. जो बच्चे स्कूल जा रहे हैं उनकी संख्या भी बहुत कम है. कई अभिभावकों ने अपने बच्चों के नाम स्कूल से कटवा कर अन्य निजी स्कूलों में लिखवा दिए हैं. बच्चों की घटती संख्या को देखते हुए शिक्षकों ने सामुदायिक भवन में स्कूल संचालित करना शुरू कर दिया है. वहीं जो पक्का अतिरिक्त कक्ष स्कूल का था उसमें भी कक्षा लगाई जा रहीं हैं. जबकि उसकी एक दीवार ही नहीं है. ऐसे में बच्चों के सामने विकट समस्या खड़ी है लेकिन न तो प्रशासनिक अधिकारी ध्यान दे रहे हैं और न ही शिक्षा विभाग. जर्जर हो चुके स्कूल भवन में बैठने से बच्चे डर रहे हैं कि कब यह दीवार और छत किसी पर गिर जाए कोई भरोसा नहीं है.Damoh Dilapidated School