दमोह। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर बिजोरी पाठक में रहने वाले बुजुर्ग महेंद्र पांडे का साइकिल चलाने वाला शौक अब उनकी पहचान बन चुका है. यही खासियत उन्हें दूसरों से अलग बनाती है, गांव के लोग इन्हें साइकिल वाले दादा जी के नाम से जानते हैं और उन्हें सम्मान भी देते हैं.
88 साल की उम्र में भी 'साइकिल वाले दादाजी' दे रहे युवाओं को मात, बचपन के शौक ने दिलाई पहचान
दमोह के बुजुर्ग महेंद्र पांडे का साइकिल प्रेम आज पर्यावरण संरक्षण में भी मिसाल बन गया है. 88 साल की उम्र में भी वे साइकिल चलाकर युवाओं को मात दे रहे हैं. वे इतनी उम्र में भी काफी स्वस्थ्य हैं, जिसका श्रेय वो साइकिल चलाने को देते हैं.
लोगों के लिए मिसाल बने महेंद्र पांडे का कहना है कि साइकिल चलाने से व्यक्ति जीवनभर स्वस्थ रहता है. उन्होंने कहा कि साइकिल चलाने की वजह से ही आज तक उन्हें चश्मा नहीं लगा और ना ही उनके दांत टूटे हैं, वे एकदम स्वस्थ हैं. उन्होंने कहा कि उनके सभी अंग नौजवानों की तरह काम कर रहे हैं. उन्होंने नव पीढ़ी को अपने व्यस्त समय में भी साइकिल चलाने की सलाह दी है.
महेंद्र पांडे ने कहा कि जब वे 13 साल के थे, तो माता-पिता के गुजर जाने के बाद इनकी बहन ने पढ़ाई के लिए बाहर जाने के लिए एक साइकिल दिला दी थी. उस समय से उन्हें साइकिल चलाना पसंद है. आज 88 साल की उम्र में भी उन्होंने साइकिल का साथ नहीं छोड़ा है. उन्होंने कहा कि जब उन्हें दमोह आना होता है, तो वे 60 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करके यहां आ जाते हैं. उन्होंने कहा कि उनका घर नाती-पोतों से भरा-पूरा और संपन्न है.
खास बात ये है कि उनके घर में दोपहिया-चारपहिया दोनों तरह के वाहन हैं, इसके बावजूद वे साइकिल से ही सफर करते हैं, चाहे उन्हें पन्ना, नरसिंहपुर, जबलपुर, सागर या टीकमगढ़ जैसी लंबी दूरी की यात्रा ही क्यों न करनी पड़े.