सर्च इंजन में भी दमोह सर्च करने पर पहली तस्वीर घंटाघर की ही आती है. घंटाघर के चारों ओर बने बाजार में रौनक देखने को मिलती है. समय के साथ जैसे-जैसे बाजार का विस्तार होता गया, वैसे-वैसे घंटाघर के चारों ओर का इलाका छोटा पड़ता गया. जानकारों की मानें, तो जब घंटाघर का निर्माण हुआ था, उस समय वहां आसपास इतना विकास नहीं था. वहां पर पेड़ और झाड़ियां हुआ करती थीं.
आजादी के इतिहास को खुद में समेटे दमोह का घंटाघर उपेक्षा का शिकार
दमोह। जिले का हृदय स्थल माना जाने वाला घंटाघर उपेक्षा का शिकार होता नजर आ रहा है. नगर पालिका ने घंटाघर के सुधार के लिए कई बार राशि खर्च की है, लेकिन यह घंटाघर आज भी अपने सही समय का इंतजार कर रहा है.
अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा घंटाघर
घंटाघर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की फोटो लगाई गई है, लेकिन रात के समय लाइट नहीं जलने से यह क्षेत्र अंधेरे में डूबा रहता है. जानकारों की मानें तो पहले इस स्थान पर फव्वारा हुआ करता था, जिसे आजादी के बाद तोड़कर घंटाघर बनाया गया. लेकिन आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद यह घंटाघर उपेक्षा का शिकार हो चुका है.