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दमोह के रण में कूदे 37 उम्मीदवार, 11 पीछे हटे तो चार के नामांकन निरस्त

एमपी के दमोह में शनिवार को उपचुनाव का आखिरी दिन नामांकन किया गया. दमोह सीट पर 37 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया.

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दमोह उपचुनाव

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Published : Apr 3, 2021, 9:42 PM IST

दमोह। जिले में शनिवार को दमोह की सीट पर होने वाले उपचुनाव के नामांकन का आखिरी दिन रहा. दमोह सीट पर 37 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया, जिनमें से 11 उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया और 4 उम्मीदवारों के नामंकन निरस्त कर दिया गया. इस तरह दमोह के दंगल में अब 22 उम्मीदवार हैं.

तीन महिला उम्मीदवारों ने नामांकन किया दाखिल
उपचुनाव के नामंकन के लिए सुबह से ही नामंकन होना शुरू हो गया था. वहीं आज रात तक सभी को चुनाव चिह्न मिलने की संभावना हैं. बताया जा रहा है कि इस बार तीन महिला उम्मीदवारों ने भी नामांकन पर्चा भरा है लेकिन किसी भी मुख्य दल से कोई महिला प्रत्याशी नहीं उतारी गई है. राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक दमोह सीट पर 1951 से 2018 तक भाजपा और कांग्रेस किसी ने भी महिलाओं को मौका नहीं दिया.

दमोह का दंगल: चुनावी मैदान में दो महिलाओं सहित 30 प्रत्याशी

दमोह सीट पर 28 निर्दलीय उम्मीदवारों ने नामांकन पर्चा भरा है. निर्दलीय उम्मीदवारों में से कुछ ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनकी क्षेत्र पर अच्छी पकड़ है. ऐसे में निर्दलीय उम्मीदवार भाजपा और कांग्रेस के चुनावी समीकरणों को भी बिगाड़ सकते हैं.

दमोह सीट पर ब्राह्मण वोट का वर्चस्व
बता दें कि दमोह विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. विधानसभा क्षेत्र में लगभग 20 हजार ब्राह्मण वोटर हैं. ऐसे में जिस पार्टी को ब्राह्मणों वोट मिला, उस पार्टी के चुनाव जीतने के चांस बढ़ जाते हैं. पिछले चुनाव में भी ब्राह्मण वोटर्स ने निर्णायक भूमिका निभाई थी. कांग्रेस ने दमोह विधानसभा उपचुनाव में ब्राह्मण वर्ग से आने वाले अजय टंडन को प्रत्याशी बनाया है, तो बीजेपी ने शिवराज सरकार में कद्दावर मंत्री गोपाल भार्गव को दमोह उपचुनाव का प्रभारी बनाकर ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की है.

ब्राह्मण वोटर्स को साधने में जुटीं पार्टियां
दमोह से बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री जयंत मलैया लगातार सात विधानसभा चुनाव जीते हैं, उनकी जीत में ब्राह्मण वोटर्स की भूमिका अहम रही है. जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की जीत में इस वर्ग का वोट निर्णायक माना गया था. यही वजह है कि दोनों पार्टियां इस वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करना चाहती हैं. ताकि उनकी राह आसान हो सके.

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