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कोरोना के दौर में धीरे-धीरे पटरी पर आ रही गांव की अर्थव्यवस्था, मजदूरों को मनरेगा बन रही सहारा - छिंदवाड़ा मजदूरों को काम

लॉकडाउन के बाद प्रशासन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मनरेगा के जरिए मजदूरों को काम देना शुरू किया. गांव में निस्तारी तालाब हो या फिर कच्ची सड़कों में काम, इतना ही नहीं कई जगह तो पुरानी धरोहरों को सहेजने का भी काम शुरू किया गया.

Workers found work under MNREGA in Chhindwara
मजदूर

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Published : Dec 15, 2020, 8:16 AM IST

छिन्दवाड़ा। कोरोना को रोकने लगाए गए लॉकडाउन में सबसे ज्यादा मुसीबतों का पहाड़ मजदूरों पर टूटा था. हालात यह थे कि इस दौरान कई परिवारों को खाने के लाले पड़ रहे थे. भारत सरकार की मजदूरों को राहत देने वाली योजना मनरेगा ने कोरोना के दौरे में ऐसे लोगों के लिए काफी कारगर साबित हुई है.

मजदूरों को मिल रहा काम

लॉकडाउन के बाद फिर से शुरू हुई मनरेगा

लॉकडाउन के बाद प्रशासन ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मनरेगा के जरिए मजदूरों को काम देना शुरू किया. जिसके चलते गांव में निस्तारी तालाब हो या फिर कच्ची सड़कों में काम, इतना ही नहीं कई जगह तो पुरानी धरोहरों को सहेजने का भी काम शुरू किया गया. जिसके बाद मजदूरों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई.

काम करती महिलाएं

छिंदवाड़ा को मिला था 1 करोड़ 30 लाख का बजट

छिंदवाड़ा जिले में इस साल मनरेगा के तहत 1 करोड़ 30 लाख रुपए का बजट निर्धारित किया गया था. जिसमें से 98 लाख का काम हो चुका है और 15 जनवरी तक लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा. जिला पंचायत सीईओ ने बताया कि कोरोना के बाद जिले में जरूरत के काम मनरेगा के तहत कराए जा रहे हैं, जिससे मजदूरों को आर्थिक परेशानियों से न गुजरना पड़े.

मजदूर

97 लाख से ज्यादा दिनों का दिया जा चुका है रोजगार

भौगोलिक रूप से मध्यप्रदेश के सबसे बड़े जिले छिंदवाड़ा में अब तक 97 लाख 37 हजार 515 लोगों को रोजगार दिया जा चुका है. जिसमें से 183 हजार 55 परिवारों के 319971 लोगों को रोजगार दिया गया है. जिसके चलते छिंदवाड़ा जिले में 17 हजार 5 सौ 88 काम अब तक पूरे किए जा चुके हैं.

कोरोना के डर के चलते कम पहुंच रहे मजदूर

कोरोना महामारी से जहां पूरी दुनिया डरी हुई है. वह डर मजदूरों को भी सता रहा है. लेकिन जीवन गुजारने के लिए आर्थिक जरूरतें भी पूरी करनी होती है. जिसके चलते अब धीरे-धीरे मजदूर इस डर को छोड़कर मनरेगा में काम करने आ रहे हैं. छिंदवाड़ा के डुंगरिया ग्राम पंचायत में पहुंची ईटीवी भारत की टीम को मजदूरों ने बताया कि पहले काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. लेकिन अब मनरेगा के चलते उन्हें काम मिल रहा है, जो उनके लिए काफी मददगार साबित हो रहा है.

मजदूर महिलाएं

मजदूरों के बैंक खाते में पहुंचती है मजदूरी

ग्राम पंचायत में जॉब कार्ड धारियों को मनरेगा के तहत साल भर में एक परिवार को 100 दिन का रोजगार देना अनिवार्य होता है. मनरेगा में मजदूरी के बाद जनपद पंचायत के माध्यम से मजदूरी सीधे मजदूरों के बैंक खातों में ट्रांसफर की जाती है. मजदूरों का कहना है कि उन्हें काम करने के बाद समय से मजदूरी मिल जाती है.

पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा महिलाएं मनरेगा में करती है मजदूरी

मनरेगा में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा मजदूरी करते हुए मिलती हैं. इसके पीछे कारण बताया जाता है कि पुरुष मनरेगा की बजाय निजी क्षेत्र में मजदूरी करते हैं. जहां से उन्हें मजदूरी भी ज्यादा मिलती है और महिलाओं के मनरेगा में काम करने से परिवार को आर्थिक मदद मिलती है. इसके चलते परिवार के सभी लोग अलग-अलग क्षेत्र में मजदूरी करते नजर आ रहे हैं.

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