छिंदवाड़ा।साहब! पहले मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे, दो पैसा बचाकर गैस भी ले लेते थे. अब स्थिति यह है कि परिवार का पेट पालने के लिए पैसे नहीं है. गैस कहां से भरवाए? दो वक्त का खाना जुटाना ही मुश्किल हो रहा है. यह शब्द उन परिवारों के है, जिन्हें केंद्र सरकार की उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेंडर तो मिल गए, लेकिन अब इन लोगों के पास सिलेंडर में गैस भऱवाने के लिए भी पैसे नहीं बचे है. नौबत तो ये है कि घर में गैस सिलेंडर के बाजू में लकड़ी का चुल्हा जलाकर रोटी बनाना पड़ रही है. रोटी भी वहीं बना पा रहा है जिनके घर में रोटी बनाने के लिए आटा बचा हो. कई लोग पर तो कोरोना कर्फ्यू की ऐसी मार पड़ी कि उनके घर में आटा भी खत्म हो गया है. परिवार का पेट पालने के लिए भी पैसे नहीं बचे.
- कोरोना संक्रमण से आर्थिक स्थिति खराब
ग्रामीण क्षेत्रों में ईटीवी भारत ने बिसापुर कला और सर्र के ग्रामीणों से की बात कि उन्हें उज्ज्वला योजना के तहत गैस मिली थी. वह उसका उपयोग भी कर रहे थे, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई, कि परिवार का पालन पोषण करना ही मुश्किल हो गया है. लगातार गैस और पेट्रोल-डीजल के बढ़े दाम ने रही सही कसर पूरी कर दी है. पहले तो गैस भरने का सोचते भी थे, लेकिन अब बढ़ते दामों के कारण सिलेंडर भरने का सोचना भी बंद कर दिया है.
सरकार ने दिए निर्देश, सभी हितग्राहियों को मिले उज्जवला योजना का लाभ
- फिर चूल्हे की ओर लौटी ग्रामीण महिलाएं