छिंदवाड़ा। जंगलों की अवैध कटाई और पर्यावरण प्रदूषण की खबरें आये दिन देखने और सुनने को मिलती है, लेकिन छिंदवाड़ा जिले का उमरिया ईसरा एक ऐसा गांव है, जहां के लोग 285 हेक्टेयर बंजर जमीन पर पौधे लगाकर मानव निर्मित जंगल तैयार कर मिसाल पेश किए हैं. लोग विरासत में जमीन जायदाद और पैसा छोड़कर जाते हैं, लेकिन उमरिया इसरा के ग्रामीणों को ऐसी विरासत मिली है, जो न सिर्फ अनमोल है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए धरोहर भी है. जिले के पूर्व मंडल के तहत आने वाले उमरिया ईसरा गांव का जंगल इन दिनों लोगों को अपनी हरियाली के लिए आकर्षित कर रहा है.
ग्रामीणों ने बंजर जमीन पर लगा दिए सैंकड़ों पेड़ 1985 से बंजर भूमि को सहेजने का काम हुआ शुरू ग्रामीणों ने बताया कि पहले इस गांव की पूरी बंजर जमीन खाली पड़ी थी. उस दौर में गांव के ही ग्रामीण स्वर्गीय किशनलाल उइके ने वन समिति बनाकर गांव में पौधे लगाने की योजना बनाई और फिर उसमें सहयोग दिया. धीरे-धीरे इस मुहिम ने आंदोलन का रूप ले लिया और अब 285 हेक्टेयर जमीन में मानव निर्मित जंगल तैयार है.
पेड़ों को मानते हैं बेटा और परिवार
वन विभाग के लोग बताते हैं कि जंगल की देखरेख करने की जरूरत उन्हें नहीं पड़ती है क्योंकि ग्रामीण ही जंगल के हर एक पेड़ को बेटे की तरह मानते हैं और जंगल को परिवार की तरह सहेज कर रखते हैं. इसलिए जंगल में अवैध कटाई और गलत गतिविधियां कुछ भी नहीं होती हैं, ग्रामीण ही इस जंगल की देखरेख करते हैं.
सागौन और बांस के अलावा मिश्रित जंगल हुआ निर्मित
285 हेक्टेयर जमीन यानी करीब 712 एकड़ में फैले इस जंगल में सागौन-बांस के अलावा मिश्रित जंगल का निर्माण किया गया है. जंगल निर्मित होने के बाद इसमें अब वन्य जीव भी विचरण करने लगे हैं और लगातार गांव में अभी भी वन विभाग की सहायता से पौधरोपण का काम जारी है.
जंगल के मुनाफे से बदल रही गांव की तस्वीर
सागौन और बांस के प्लांटेशन से ग्रामीणों को मुनाफा भी होने लगा है. यहां जंगल की हर गतिविधि ग्राम वन समिति द्वारा संचालित की जाती है. जिसके चलते 1996, 2000, 2005 और उसके बाद लगातार किए गए बांस के प्लांटेशन के चलते अब बांस काटने का काम शुरू हो गया है. गांव में बांस की बिक्री से आई रकम से तालाब, स्टॉप डैम, जंगल के बीच एक गांव से दूसरे गांव जाने वाली सड़क सहित कई तरह के विकास काम किए जा रहे हैं.
जंगल में सिर्फ सूखे पेड़ काटने की अनुमति
वन समिति के अध्यक्ष ने बताया कि जंगल की देखरेख गांव वाले ही करते हैं. कोई भी अनजान व्यक्ति जंगल के अंदर आता जाता अगर दिखाई देता है तो उसे रोक दिया जाता है. साथ ही जंगल में सिर्फ गांव वालों को जाने की अनुमति है. ताकि वो जंगल में लगे लेंटाना और सूखे पेड़ की लकड़ी ला सकें. बाकी किसी भी तरह के पेड़ और पौधों को गांव वाले भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाते. सभी जंगल में लगे पेड़ को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं.