छिंदवाड़ा। जीते जी सुकून मिले न मिले, मरने पर दो गज जमीं तो मिले, अब यहां मरने के बाद न तो दो गज जमीं मयस्सर है और न ही खाक होकर मिट्टी में मिलने के लिए चिता सजाने की जमीन. रजोला पंचायत के ग्रामीण आजकल इसी परेशानी से लड़ रहे हैं कि किसी की मौत के बाद उसका दाह संस्कार कहां करें या उसे सुपुर्द-ए-खाक कहां करें, क्योंकि सैकड़ों सालों से ग्रामीण जहां अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं, वहां अब फेंसिंग कर दी गई है क्योंकि श्मशान की जमीन को उसके मालिक ने किसी और को बेच दिया है, नए खरीददार ने पूरी जमीन की घेराबंदी कर कब्जा कर लिया है. जिसने इस जमीन को बेचा है, उसी के दादा-पुरखे इस जमीन को श्मशान के लिए ग्रामीणों को दान किये थे.
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पूर्वजों ने दान की दी थी श्मशान घाट की जमीन
रजोला गांव के ग्रामीणों ने बताया कि सैकड़ों साल पहले गांव में जब जमीदारी प्रथा चलती थी, तब रजोला गांव के जमीदार ने गांव में श्मशान घाट के लिए जमीन दान की थी, बस सरकारी रिकॉर्ड में जमीन का मद परिवर्तन नहीं किया गया था, इसकी वजह से राजस्व रिकॉर्ड में जमीन परिजनों के नाम आ गई और अब जमीदार के पोते राजेश चन्द्रवंशी ने लखी चंद्रवंशी को जमीन बेच दी, खरीददार लक्ष्मी चंद ने जमीन पर कब्जा करते हुए फेंसिंग लगा दी है.
गिड़गिड़ाने पर मिली अंतिम संस्कार की अनुमति
हाल ही में गांव के यादव समाज के बुजुर्ग की मौत होने पर उसे श्मशान घाट ले जाया गया, जहां मोक्ष धाम की जगह पर चारों तरफ से तारों की फेंसिंग लगी हुई देखी गई तो ग्रामीण आक्रोशित हो गए, बाद में पता चला कि श्मशान घाट की जमीन पर जिस का मालिकाना हक था, उसने जमीन किसी दूसरे को बेच दिया है और खरीददार ने कब्जा करते हुए फेन्सिंग लगा दी है, मृतक के परिजनों ने जमीन मालिक से गिड़गिड़ाकर अंतिम संस्कार करने की विनती की, तब जाकर अंतिम संस्कार करने दिया गया. वो भी आगे से वहां अंतिम संस्कार नहीं करने की शर्त पर.