छिंदवाड़ा। संतरा एक ऐसा फल है जिसकी खेती समान्यतः समतल भूमि और गर्म जलवायु में ही होती है. लेकिन अब संतरे खेती पठारी (Orange Farming) और ठंडे इलाकों में भी हो सकती है. छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र (Agricultural Research Center Chhindwara) में कृषि वैज्ञानिकों (Agricultural Scientist) ने इसका सफल परीक्षण किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस परीक्षण से किसानों की समस्या का समाधान होगा, क्योंकि पहले संतरे सिर्फ समतल भूमि और गर्म जलवायु पैदा होते थे. इस परीक्षण के बाद किसान संतरों को पहाड़ी इलाके में उगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे. पहाड़ों पर किस पद्धति से संतरे का उत्पादन किया जा सकता है इसको लेकर वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ETV Bharat से खास बातचीत की...
23 हजार हेक्टेयर में होती है संतरे की खेती
वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय बताते है कि छिंदवाड़ा के सौंसर और पांढुर्णा में करीब 23 हजार हेक्टेयर (57 हजार एकड़) जमीन में संतरे की खेती की जाती है. लोल ऐसा कहते कि समतल भूमि और गर्म इलाकों में ही अच्छे संतरे की पैदावार होती है. लेकिन छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम ने पहाड़ी और ठंडे इलाकों में लगाने वाले संतरों की नई किस्म तैयार की है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस किस्म से पहाड़ी और ठंडे इलाकों में भी संतरे की खेती की जा सकेगी. इससे किसानों को अच्छा फायदा होगा.
रूट स्टॉक के लिए जंबूरी पौधों का होता है इस्तेमाल
कृषि वैज्ञानिक विजय ने बताया कि अधिकतर किसान भाई पौधे खरीद कर खेतों में लगा देते हैं, जो सफल नहीं हो पाते. अनुसंधान केंद्र में जेंबूरी और रंकूर पौधों को रूटस्टॉक के रूप में प्रयोग किया गया है. नागपुरी संतरे की कलम उसमें बडिंग की गई है. जिसके बाद एक सफल पौधा तैयार होता है, जो करीब 30 साल तक फल दे सकता है. किसान यदि इस पद्धति से खेती करते है तो उन्हें अच्छा लाभ होगा.
MP में आम और संतरे से किसान होंगे मालामाल
किसी भी इलाके में कर सकते है संतरे की खेती