छिंदवाड़ा। देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कई आंदोलन किए. बापू के असहयोग आंदोलन को छिंदवाड़ा से व्यापक शुरुआत मिली थी, जब गांधीजी ने छिंदवाड़ा में सभा की तो यहीं से ही इस आंदोलन का चिंगारी पूरे देश में फैली और देखते ही देखते पूरा देश गांधी के साथ हो गया. इस आंदोलन के बाद सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद पहली बार अंग्रेजी राज की नींव हिल गई.
छिंदवाड़ा से हुई थी असहयोग आंदोलन की व्यापक शुरुआत हालांकि असहयोग आंदोलन की शुरआत 1 अगस्त 1920 को ही हो गई थी, लेकिन आंदोलन को व्यापक शुरुआत 6 जनवरी 1921 को छिंदवाड़ा से मिली.
शिक्षाविद ओपी शर्मा ने बताया कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में दिसंबर 1920 को एक प्रस्ताव पारित किया गया. जिसमें गांधी जी के असहयोग आंदोलन को समर्थन देने की रणनीति बनी. इसके बाद गांधी जी 6 जनवरी 1921 को छिंदवाड़ा पहुंचे, जहां उन्होंने चिटनवीस गंज में सभा की और यहीं से असहयोग आंदोलन की व्यापकता और उद्देश्य की घोषणा की थी. इसकी याद में चिटनवीस गंज का नाम बदलकर गांधीगंज कर दिया, जो गांधी के असहयोग आंदोलन की सुध दिलाता रहता है.
अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए शुरु किए गए असहयोग आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया, वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया. वहीं कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुईं, जिनमें छह लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ. शहरों से लेकर गांव-देहात में इस आंदोलन का असर दिखाई देने लगा और पहली बार आंदोलन बुद्धिजीवी वर्ग के दायरे से निकलकर जनआंदोलन बन गया.