छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा जिले की अहम विधानसभाओं से चौरई विधानसभा अनारक्षित है, लेकिन इस विधानसभा में अन्य पिछड़ा वर्ग का दबदबा है. मुख्य तौर से भाजपा और कांग्रेस के बीच यहां पर मुकाबला होता है, लेकिन गोंडवाना गणतंत्र पार्टी निर्णायक भूमिका अदा करती है. कांग्रेस पार्टी ने इस विधानसभा में एक जाति विशेष पर ही हमेशा अपना विश्वास जताया है, तो वहीं बीजेपी ने पिछले 3 दशक से सिर्फ एक चेहरे पर ही दांव लगाते नजर आ रही है.
1990 से बीजेपी ने ब्राह्मण तो कांग्रेस ने रघुवंशी पर जताया भरोसा:अनारक्षित चौरई विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता है. साल 1990 के विधानसभा चुनाव से अगर बात करें तो यहां पर कांग्रेस ने सिर्फ रघुवंशी जाति के ही प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. तो वहीं भाजपा ने ब्राह्मण समाज से एकमात्र प्रत्याशी पंडित रमेश दुबे को ही मौका दिया है.
ओबीसी बाहुल्य विधानसभा आदिवासी होते हैं निर्णायक:चौरई विधानसभा में जातिगत समीकरणों की बात करें तो अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता करीब 45 फीसदी हैं, जिसमें 35 फीसदी लोधी जाति के हैं. वहीं परिसीमन के दौरान बिछुआ विकासखंड चौरई विधानसभा में जुड़ जाने की वजह से आदिवासी मतदाता निर्णायक की भूमिका निभाते हैं. करीब 30 फीसदी आदिवासी मतदाता इस विधानसभा में हैं और 20 फीसदी मतदाता सामान्य वर्ग से आते हैं. जिसमें रघुवंशी, जैन, पंडित और दूसरे समाज के लोग हैं.
कांग्रेस का पड़ला रहा भारी: 1990 के विधानसभा चुनाव से ही बीजेपी ने ब्राह्मण समाज से एकमात्र प्रत्याशी पंडित रमेश दुबे को ही मैदान में उतारा है. जिसमें पंडित रमेश दुबे ने 1990, 2003 और 2013 में जीत दर्ज की है. इसके अलावा कांग्रेस ने रघुवंशी जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा कांग्रेस ने 4 बार जीत दर्ज की है.
ये रहे परिणाम: साल 2018 में कांग्रेस से शिक्षक की नौकरी छोड़ कर चुनाव लड़े चौधरी सुजीत सिंह ने बीजेपी के पंडित रमेश दुबे को 13004 वोटों से चुनाव हराया. इस चुनाव में चौधरी सुजीत सिंह को 78415 वोट तो वहीं पंडित रमेश दुबे को 65411 वोट मिले थे.
साल 2013 का परिणाम:साल 2013 में बीजेपी के पंडित रमेश दुबे ने कांग्रेस के चौधरी गंभीर सिंह को 13631 वोटों से हराया था. इस चुनाव में पंडित रमेश दुबे को 70810 वोट तो वहीं चौधरी गंभीर सिंह को 57169 वोट मिले थे.