छिंदवाड़ा। चिलचिलाती धूप और इस बेहद गर्मी भरे वातावरण में जब आप पसीने से तर बतर हो जायें तो ये जंगली फल- छींद आपको राहत दे सकता है. छींद फल ही नहीं, भोजन का साधन भी है. इन दिनों छींद की काफी आवक है. जानिए क्या है इसके फायदे. बता दें इसके पेड़ पर गुच्छो में लदे नारंगी फल लगते हैं, जो खजूर के जैसे स्वाद होते हैं. इसके बीज भी खजूर के बीजों की तरह दिखते हैं.
कैसे पड़ा छिंदवाड़ा नाम: छींद वह पौधा है, जिसकी बाहुल्यता के आधार पर ही छिंदवाड़ा का यह नाम (छींद + वाड़ा) पड़ा. इसके पेड़ अत्यंत सूखे मौसम में भी ताजे, मीठे और स्वादिष्ट फल उपलब्ध कराते हैं. वनस्पति विशेषज्ञ डॉ विकास शर्मा ने बताया कि छींद के फल प्राकृतिक शर्करा के साथ साथ सूक्ष्म और वृहद पोषक तत्वों का भंडार होते हैं. यह सम्पूर्ण पेड़ ही परस्थितिक तंत्र और मानव समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसकी पत्तियों से झाड़ू, टट्टे, चटाई, कई प्रकार के सुंदर आभूषण, टोकरी आदि बनाई जाती है. जो किसानो के लिए अभूतपूर्व महत्वपूर्ण है. साथ ही इसके तने किसानों के मकान में म्यार (छत का मुख्य सहारा) बनाने के काम आती है. बहुत कम लोग ही जानते होंगे, इसके पेड़ के भीतर मौजूद कोमल जायलम मिठाई/ पेठे की तरह खाई जाती है. जिसे गाबो कहते है. यह बहुत ही पोष्टिक व प्राकृतिक शर्करा, विटामिन, प्रोटीन तथा मिनरल्स से भरपूर होती है.
देशी खजूर बढ़ाता है जंगलों की शान: इसके फलों का अपना अलग ही स्वाद है. जो कुछ-कुछ खजूर की तरह ही होते हैं, लेकिन इनमें गूदा कम होता है. इस समय चारों और छींद के फलों की बहार आयी हुई है. इसके फलों की एक बात बहुत अच्छी है कि, गुच्छे को तोड़कर घर पर लाकर टांग दो, ये धीरे-धीरे पकते जाते हैं. मतलब एक बार लाओ और कई दिनों तक खाते रहो. सायकस की तरह तनो के ऊपर मौजूद कोरोलॉइड जड़ें, सहजीवी संबंध के अध्ययन का एक अच्छा नमूना है, जो स्कूल व कॉलेज के बच्चों को पढ़ाया जाता है.
कला के साथ ही रोजगार का भी है साधन: इसकी पत्तियों से अंगूठी बनाते थे, भारतीय और जनजातीय संस्कृति में विवाह के दौरान मुकुट के रूप में छींद की उपस्थिति अनिवार्य है. सबसे महत्वपूर्ण बच्चों के लिये इसके पत्तियों के डंठल/ फर/ फर्रा जो नीचे की ओर चोड़े होते है, गाड़ी की तरह गांव में प्रचलित खेल सामग्री है. छिंदवाड़ा की पहचान कहे जाने वाले छींद पेड़ की पत्तियों से सुंदर साज व घरेलू उपयोग की सामग्री बनाई जाती है. क्षेत्र में भी इसके उत्तम दर्जे के कलाकार रहते हैं. अपने घरों में विशेष अवसरों पर प्लास्टिक की सजावटी सामग्री लोग अपने घरों में रखते हैं.
खजूर की प्रजाति का होता है छींद: छींद के पेड़ पर चार-पांच वर्ष की उम्र से ही स्वादिष्ट फल लगने लगते हैं. जो देखने में खजूर की तरह ही होते हैं, किंतु इनका आकार थोड़ा छोटा होता है. ये अपेक्षाकृत कम मांसल होते हैं, लेकिन स्वाद में यह जरा भी कमतर नहीं है. जहां एक और इसके फल मीठे और स्वादिष्ट होते हैं. वहीं इसके सेवन से बुखार, कमजोरी, चक्कर आना, गला सूखना, उल्टी आना, जी मचलाना आदि समस्याओं से लाभ मिलता है. इसमें बहुत अधिक मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, फिनोल, एमिनो एसिड, फ्लेवोनॉयड, टेनिन, अल्कलॉइड्स, टरपिनोइडस, फाइबर, विटामिन तथा कई तरह के मिनरल्स पाए जाते हैं. इन सबके अलावा इसका बीज ग्रामीण क्षेत्रों में जायफल, बादाम, हरड़ एवं हल्दी के साथ मिलाकर जन्म घुट्टी में दिया जाता है. जिससे बच्चों का पाचन तंत्र दुरुस्त होता है.
गन्ने की शक्कर से सेहतमंद होती है छींद की चीनी: कुछ स्थानों पर इसके तनों में छेद करके इससे एक स्वादिष्ट पेय प्राप्त किया जाता है. जो काफी कुछ ताड़ी से मिलता-जुलता होता है, जिसे छींदी कहते हैं. अन्य स्थानों पर इस मीठे रस से गुड़ भी तैयार किया जाता है. जिसे पाम जगरी के नाम से जाना जाता है. जो सामान्य गन्ने से प्राप्त शक्कर से कहीं अधिक सेहतमंद होता है. ग्रामीण क्षेत्रों में जब कोई छींद का पेड़ आंधी और तूफान से टूट कर गिर जाता है, तब ग्रामीण चरवाहे इसके शीर्ष भाग को काटकर तने का कोमल हिस्सा निकालते हैं. जो देखने में व स्वाद में पेठे से मिलता-जुलता होता है, इसे खाने का एक अलग ही मजा होता है. एक अन्य नजरिए से देखें तो, इसके कोमल जाइलम में स्टार्च का भंडार होता है.
देशी खजूर (छींद) के फायदे:
दिल की करें देखभाल:खजूर में मौजूद पोटेशियम और फाइबर हमारे दिल को स्वस्थ रखते हैं, जिससे हार्टअटैक का खतरा काफी हद तक टल जाता है.