छिंदवाड़ा।कोरोना कर्फ्यू में समाजसेवी लगातार जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं. वहीं छिंदवाड़ा में माता मंदिर ट्रस्ट हर दिन माता के प्रसाद के नाम से हजारों लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य अस्पताल में परेशान हो रहे मरीजों के परिजन और जरूरतमंद की मदद करना है. मंदिर ट्रस्ट 28 अप्रैल से लगातार भोजन तैयार कर बांट रहा है.
हर दिन बांट रहे 5 हजार फूड पैकेट
दरअसल श्री बड़ी माता मंदिर ट्रस्ट के कुछ लोग कोरोना संक्रमित हो गए थे और जिला अस्पताल में भर्ती थे. इस दौरान उनके परिजन वहां पहुंचे और देखा कि बाहर के मरीजों के परिजन कोरोना कर्फ्यू के कारण खाने के लिए काफी परेशान हो रहे हैं. इसके बाद से ट्रस्ट ने ऐसे परिजनों के लिए खाने की व्यवस्था शुरू की. 28 अप्रैल से भोजन की व्यवस्था करने का सिलसिला शुरू हुआ. शुरिआत में करीब 200 पैकेट भोजन बांटा जाता था. लेकिन देखते ही देखते यह संख्या 5 हजार तक पहुंच गई. आज हर दिन मंदिर ट्रस्ट की तरफ से 5 हजार पैकेट बांटे जा रहे हैं.
हर दिन 5 हजार पैकेट भोजन बांटा जा रहा करीब 100 लोग तैयार करते हैं खाना
बड़ी माता मंदिर ट्रस्ट के करीब 100 लोगों की टोली 5 हजार लोगों के लिए खाना तैयार करती है. सुबह करीब 7 बजे से भोजन बनाने का काम शुरू होता है. इस दौरान दोनों टाइम का मिलाकर 5 हजार पैकेट भोजन तैयार किया जाता है. इस दौरान सभी को अलग-अलग काम दिया गया है, ताकि किसी प्रकार की समस्या ना आए. भोजन बनाने के बाद एक काउंटर जिला अस्पताल के सामने लगाया जाता है. वहीं एक टीम गाड़ी लेकर शहर के अलग-अलग इलाकों में घूमती है और जहां जरूरतमंद दिखते हैं उन्हें भोजन के पैकेट दिए जाते हैं.
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साफ-सफाई का रखा जा रहा विशेष ध्यान
माता के प्रसाद के रूप में बनने वाले भोजन में ट्रस्ट हाइजीन तकनीक का इस्तेमाल करता है. कमरे में घुसने के पहले सैनेटाइजेशन होता है, हाथों में ग्लव्स, मुंह में मास्क और सिर को कवर कर अंदर जाने दिया जाता है. इसके बाद ही भोजन बनाने की अनुमति होती है. सिल्वर फाइल में रोटी की पैकिंग और सिल्वर पैकेट में सब्जी दी जाती है. ताकि खाना खराब न हो और जरूरतमंद को आसानी से गर्म खाना मिल सके. मंदिर ट्रस्ट ने हालांकि किसी से आर्थिक सहायता नहीं ली है. लेकिन शहर के कई लोग इसमें मदद कर रहे हैं. इतना ही नहीं सैकड़ों युवा कोरोनाकाल में भी मंदिर पहुंचकर सुबह से शाम तक खाना बनाने से लेकर उसे वितरण करने में लगे रहते हैं. ताकि कोई भूखा न रहे और खाने के लिए उसे परेशान न होना पड़े.