छिन्दवाड़ा। छिंदवाड़ा से गुजरने वाले हाइवे के दोनों तरफ सब्जी की छोटी-छोटी दुकानें लगाए बैठे ये किसान हैं ना कि सब्जी के विक्रेता. इनकी मजबूरी ये है कि या तो ये अपनी उपज को खेतों में ही सड़ने दें या फिर खुद खुदरा दुकानदार बन जाएं. यही मजबूरी इन्हे यहां तक खींच कर लाई है ताकि इनका घर चल सके. जो भी कमाई को हो उससे परिवार का पेट पल सके. लॉकडाउन का असर हर किसी पर पड़ा है. मगर इसकी बड़ी मार किसानों पर पड़ी है जो आज मजबूर हैं परिवार का पेट पालने के लिए खेत के बाद हाइवे किनारे बैठकर अपनी उपज बेंचने के लिए.
रियायतों का कितना हुआ असल
लॉकडाउन के दौरान लोग आर्थिक रुप से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. जिसे देखते हुए सरकार ने कुछ रियायतों के साथ बाजार तो खोल दिये, लेकिन हाट बाजार अब भी शुरु नहीं हो पाए. जिसके बाद छोटे किसान जो हर रोज व्यापारियों को सब्जियों की उपज बेंचकर अपनी रोजी-रोटी चलाते थे, अब हाइवे के किनारे बैठकर सब्जी बेंचने को मजबूर हैं. यहां पर रियायतों का कुछ खास असर नहीं हुआ.
सब्जी की दुकान लगाए बैठे किसान ऐसे चलता है घर का खर्च
गर्मी के दिनों में घरेलू खर्च चल सके इसके लिए अधिकतर छोटे किसान, छोटे रकबे की जमीन में सब्जी की फसल उगाते हैं. जिसे बाद में बाजारों में बेचकर घर का काम चलता है और आमदनी का जरिया भी यही होता है. लेकिन लॉक-डाउन की वजह से बाजार बंद हैं तो मजबूरन अब छोटे किसान सड़कों के किनारे सब्जी बेचने के लिए विवश हैं. इन नए किस्म के सब्जी दुकानदारों का जो किसान पहले हैं का कहना है कि लॉक डाउन की वजह से घर में खाने के लाले पड़ रहे हैं. मजबूर जो ना कराए. अब उन्हें सड़कों के किनारे दुकान लगाना ही पड़ रहा है. जिससे उनका खर्च चल रहा है.
ग्राहकों के इंतजार में महिला दुकानदार सब्जी बेचने के लिए बैठे किसान हाट बाजार पर टिकी है ग्रामीण अर्थव्यवस्था
सड़क पर दुकान लगाने वाले किसानों का कहना है कि पहले इकट्ठा माल हाट बाजार में बेच दिया करते थे, लेकिन अब सड़कों पर दिन भर बैठना पड़ता है. मुश्किल से कुछ एक ग्राहक आते हैं और महज कुछ रुपए मिल पाते हैं, जिससे उनका परिवार चल रहा है. छिंदवाड़ा जिले के ग्रामीण अंचलों में सप्ताह भर में करीब 15 सौ हॉट बाजार लगते थे. जिनके सहारे ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था टिकी हुई होती थी.
सोशल डिस्टेंसिंग के साथ दुकान लगाए किसान इन छोटे बाजारों में गांव में उपजने वाली सब्जी हो या फिर गांव के वनोपज इन्हें बेंच कर ग्रामीण अपना जीविका यापन करते हैं. लेकिन अब हाट बाजार बंद हैं तो ग्रामीणों के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.