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छिंदवाड़ा आकर गांधी जी ने क्यों नीलाम की थी चांदी की प्लेट ?

आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी दो बार मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा पहुंचे थे, जिसमें कई ऐसे रोचक प्रसंग मिलते हैं, जिनसे इस इलाके में ईस्ट इंडिया कंपनी की कमर टूट गई थी.

Gandhi had auctioned the plate in Chhindwara to raise money for the freedom movement
छिंदवाड़ा प्रवास से जुड़ी बापू की कुछ यादें

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Published : Jan 7, 2020, 9:43 AM IST

Updated : Jan 7, 2020, 3:06 PM IST

छिंदवाड़ा। आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी दो बार मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा पहुंचे थे. पहली बार दिसंबर 1920 और दूसरी बार 1933 में. गांधी जी की इन्हीं दो यात्राओं ने छिंदवाड़ा में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन को तेज किया और कई लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा. दोनों ही यात्राओं के दौरान कई ऐसे दस्तावेज मिलते हैं, जो गांधी जी के बारे में लोगों के मन में और भी ज्यादा प्रेम और आदर जगा देते हैं.

गांधी प्रवास शताब्दी समारोह

1921 में पहली बार आए थे छिंदवाड़ा
महात्मा गांधी पहली बार 6 जनवरी 1921 को पहली बार छिदवाड़ा आए थे. इस प्रवास में उन्होंने विशाल जनसभा को भी संबोधित किया था. महात्मा गांधी ने दिसंबर 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में हिस्सा लिया और उसके बाद कांग्रेस के आह्वान पर यहां पहुंचे थे. उनके साथ क्रांतिकारी अली बंधु भी थे. इस प्रवास का छिंदवाड़ा का चिटनवीसगंज गवाह बना जहां उन्होंने जनसभा की थी.

आजादी के लिए निलाम कर दी थी अपनी चांदी की प्लेट
महात्मा गांधी दूसरी बार वर्ष 1933 में छिंदवाड़ा आए थे. वह स्वतंत्रता आंदोलन के समर्थन में धन जुटा रहे थे, तो उन्होंने अपनी चांदी की प्लेट को छिंदवाड़ा में नीलाम किया था, जिसकी कीमत 11 रुपये आंकी गई थी, लेकिन छिंदवाड़ा के एक नामी वकील गोविंदराम त्रिवेदी ने उसे 501 रुपये में खरीदा था. गोविंदराम त्रिवेदी के पोते नितिन त्रिवेदी बताते हैं कि उनके दादा ने महात्मा गांधी के ही आह्वान पर कांग्रेस की सहस्यता ली थी.

झूला जिस पर बैठ गांधी ने दिया था एकता का संदेश
नितिन त्रिवेदी अपने पुराने घर में लकड़ी का झूला दिखाते हैं, जिस पर गांधी जी बैठे थे और उनके दादा से तत्कालीन मुद्दों पर चर्चा की थी. नितिन बताते हैं, "महात्मा गांधी ने छोटे, लेकिन महत्वपूर्ण भाषण में तीन मुख्य बातें कही थी, कि जब राजभक्ति, देशभक्ति के आड़े आए, तो राजभक्ति को छोड़कर देशभक्ति को स्वीकार करना मनुष्य का धर्म हो जाता है. हिन्दुओं और मुसलमानों को मिलकर रहने की जरूरत है. हमें भाई-भाई बनकर रहना है, हमारी मुक्ति चरखे में है." इसी के बाद से ही असहयोग आंदोलन को लोगों ने सही मायने में जाना था'.

ईस्ट इंडिया सरकार के खिलाफ फूंका था बिगुल
गांधी ने छिंदवाड़ा में कहा था, "पंजाब के अन्याय का निराकरण कराना चाहते हो तथा स्वराज की स्थापना करना चाहते हो तो हमारा कर्तव्य क्या है, यह बात हमें नागपुर अधिवेशन में बताई गई है. हम सरकारी उपाधियों से विभूषित लोगों से जो कुछ कहना चाहते थे, सो सब कह चुके हैं. उपाधियों को बरकरार रखने अथवा उनका त्याग करने की जिम्मेदारी कांग्रेस ने उन्हीं पर डाली है. इसी से इस बार के स्वीकृत प्रस्ताव में उनका उल्लेख तक नहीं किया गया है. अब देश का कोई बच्चा भी ऐसा न होगा, जिसे इन उपाधिधारी लोगों से किसी प्रकार का भय अथवा उनकी उपाधियों के प्रति मन में आदरभाव हो."

ऐसा दिखा था असर
गांधी जी ने अपने पहले छिंदवाड़ा प्रवास में वकीलों से वकालत छोड़ने और देश सेवा में सारा समय देने को कहा था. गांधी जी के इस भाषण के बाद छिंदवाड़ा में कई वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी और विद्यार्थियों ने स्कूल जाना बंद कर दिया. लोगों ने विदेशी समान का उपयोग छोंड़ दिया, जिसके बाद से ही अंग्रेजों की कमर टूट गई थी. इन्हीं यादों के लिए प्रथम दौरे के 99 वीं वर्षगांठ पर 5-6 जनवरी को छिंदवाड़ा में 'गांधी प्रवास शताब्दी समारोह' का आयोजन किया गया, जिसमे उस समय की स्मृतियां ताजा हो गईं.

Last Updated : Jan 7, 2020, 3:06 PM IST

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