छिंदवाड़ा। समतल भूमि और गर्म जलवायु में ही नहीं अब संतरा पठारी और ठंडे इलाकों में भी हो सकता है. छिंदवाड़ा कृषि अनुसंधान केंद्र ने सफल परीक्षण करते हुए किसानों की चिंता दूर करने का प्रयास किया है, ताकि किसान संतरे लगाकर अच्छा मुनाफा कमा सके. किस पद्धति से संतरे का उत्पादन किया जाता है इसको लेकर ईटीवी भारत से खास बातचीत की कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने.
छिंदवाड़ा के सौंसर और पांढुर्णा में करीब 23 हजार हेक्टेयर जमीन में संतरे की खेती की जाती है, कहा जाता है की, समतल भूमि और गर्म इलाकों में ही अच्छे संतरे की पैदावार होती है, लेकिन छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र में समतल और ठंडे इलाकों में लगाने वाले संतरों के नई पौधे तैयार किए गए है.
रूट स्टॉक के लिए जंबूरी बेरी पौधों का होता है इस्तेमाल
कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि, अधिकतर किसान पौधे खरीद कर खेतों में लगा देते हैं, जो सफल नहीं हो पाते. इस पर अनुसन्धान केंद्र में जंबूरी पौधों को रूटस्टॉक के रूप में प्रयोग किया गया है और नागपुरी संतरे की कलम उसमें ब्रिडिंग की गई है, जिससे एक सफल पौधा तैयार होता है, जो करीब 30 साल तक फल दे सकता है.
विदर्भ में होता है संतरा, अब कहीं भी ले सकते हैं उपज
कृषि डॉ वैज्ञानिक विजय पराड़कर ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि, महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से लगा सौंसर और पांढुर्णा में टेंपरेचर ज्यादा होने की वजह से और समतल भूमि के कारण नागपुरी संतरे का उत्पादन होता है. दूसरा इसपर किसान को भ्रांति थी कि, इधर संतरा उत्पादित नहीं होगा, लेकिन कृषि अनुसन्धान केंद्र में तैयार किए गए संतरे के पौधों से किसान छिंदवाड़ा जिले के किसी भी इलाके में संतरे की खेती कर सकता है.
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