छिंदवाड़ा।कृषि कानूनों के विरोध (Protest Against Agricultural Laws) में एक साल से आंदोलन कर रहे संयुक्त किसान यूनियन मोर्चा के नेता बलदेव सिंह सिरसा (United Kisan Union Morcha Leader Baldev Singh Sirsa) छिंदवाड़ा पहुंचे. जहां उन्होंने यहां के किसानों को भी आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. इस मौके पर उन्होंने ईटीवी भारत (Etv Bharat) से खास बातचीत में कहा कि जब तक किसानों के हित में सरकार फैसला नहीं लेगी, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.
किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा से खास बातचीत कृषि मंत्री के प्रदेश में किसानों की हालात खराब
ईटीवी भारत से बातचीत में बलदेव सिंह सिरसा ने कहा कि भारत के कृषि मंत्री मध्य प्रदेश के ग्वालियर से हैं, मुरैना से सांसद है. लेकिन उनके ही प्रदेश का किसान बदतर हालात में है. इससे समझा जा सकता है कि सरकार किसानों के साथ कितना अन्याय कर रही है. लगातार पंजाब, हरियाणा और देशभर का किसान आंदोलन कर रहे हैं इसलिए वे छिंदवाड़ा सहित दूसरे जिलों में भी लोगों को आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
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एमएसपी की बात करने वाले मक्का किसानों के साथ कर रहे छल कपट
केंद्र सरकार ने मक्के का समर्थन मूल्य तय कर रखा है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं कर रही है. हालत यह है कि लागत का आधा हिस्सा निकलना भी अब मुश्किल हो रहा है. बलदेव सिंह सिरसा ने कहा कि एमएसपी लागू करने की बात करने वाली सरकार अपने ही राज्य में समर्थन मूल्य किसानों का मक्का नहीं खरीद रही है. इसलिए मक्का किसान अब दलालों को फसल बेचने के लिए मजबूर होंगे.
छिंदवाड़ा का किसान भी पहुंचेगा दिल्ली
बलदेव सिंह सिरसा ने कहा कि दिल्ली में किसान लगातार आंदोलन कर रहा है. छिंदवाड़ा और आसपास के जिले का किसान भी दिल्ली में सहयोग करने पहुंचेगा. जो किसान दिल्ली नहीं जा सकते वे छिंदवाड़ा सहित अन्य इलाकों में होने वाले आंदोलन और धरना प्रदर्शन में सहयोग कर सरकार के सामने दबाव बना सकते हैं.
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आंदोलन कमजोर करने के लिए बैठकें कर रही सरकार
बलदेव सिंह सिरसा ने बताया कि 12 दौर में किसानों और सरकार के बीच बैठक हो चुकी है, लेकिन सरकार किसानों की बात नहीं मान रही है. दरअसल भारत सरकार धीरे-धीरे कर किसानों का आंदोलन कमजोर करने की कोशिश कर रही है. सरकार का इरादा है कि जितने दिन ज्यादा आंदोलन चलेगा किसान परेशान हो जाएंगे, लेकिन अन्नदाता जब तक अपनी मांगे पूरी नहीं होगी और कृषि कानूनों में संशोधन नहीं किया जाएगा, तब तक अपनी लड़ाई से किसान पीछे नहीं हटेंगे.