छिंदवाड़ा। दीवारों पर उकेरे गये रंग-बिरंगे अक्षर के साथ ही देश-दुनिया की जानकारी और फर्श पर सांप-सीढ़ी से लेकर लूडो के चित्र के अलावा खेलते बच्चों की तस्वीरें किसी प्रदर्शनी या खिलौना घर का नहीं, बल्कि तामिया आदिवासी अंचल के धूसावानी गांव का सरकारी स्कूल है. एक समय ऐसा था कि बच्चे स्कूल आने से कतराते थे, लेकिन शिक्षक अरविंद सोनी ने बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने के लिए जो मुहिम शुरू की. वह निजी स्कूलों पर भारी पड़ रही है क्योंकि यहां प्राइवेट जैसी सुविधा उपलब्ध कराकर बड़े स्कूलों को भी फेल कर दिया है.
रंग लाई गुरूजी की मेहनत, 100 फीसदी उपस्थिति के साथ सरकारी स्कूल ने प्राइवेट को पछाड़ा - Children studying in sports
आदिवासी अंचल में बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए शिक्षक ने अपने पैसे से बनाया रंग-बिरंगा कमरा, अब यहां 100 फीसदी बच्चों की उपस्थिति रहती है. जहां खेल-खेल में बच्चों का ज्ञान बढ़ाया जाता है.
स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने बताया कि वे यहां खेल-खेल में यहां पढ़ाई भी करते हैं. यहां बिना बस्ते-पेन की पढ़ाई भी हो जाती है. बच्चों का कहना है कि जब से यह रंग-बिरंगा कमरा बना है, तब से पढ़ाई में मन लगने लगा है. शिक्षक अरविंद सोनी ने बताया कि यहां स्कूल में बच्चों की उपस्थिति कम रहती थी, लेकिन जब से कमरा बना है, तब से बच्चों की उपस्थिति 100 प्रतिशत हो गई है.
अब बच्चे यहां आने के लिए लालायित रहते हैं. स्कूल में पढ़कर बच्चे इस कदर एडवांस हो गए हैं कि जब टीचर बच्चों को 2 का पहाड़ा बताते हैं तो बच्चे कहते है कि हमें 3 का पहाड़ा बताइए. शिक्षक बताते हैं कि आदिवासी गांव होने के चलते बच्चे स्कूल नहीं आते थे, जो उनके लिए बड़ी चुनौती थी. उन्होंने अपने खर्च से ही स्कूल के एक कमरे को इस तरह सजाया कि बिना बस्ते के ही बच्चों को पढ़ाया जा सके और अब बच्चे यहां आकर खेलने के साथ ही पढ़ाई करते हैं.