छिंदवाड़ा। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की याद में 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है, लेकिन छिंदवाड़ा के ओलंपिक ग्राउंड की हालत देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के अधिकारी खेल के प्रति कितने संवेदनशील हैं. जिला ओलंपिक ग्राउंड को अगर एक नजर में देखें तो लगता है कि यह कोई खेल का मैदान नहीं बल्कि घास का मैदान है.
ओलंपिक ग्राउंड के हालात खराब दरअसल इस मैदान की देखरेख जिला ओलंपिक संघ करता है, जिसके अध्यक्ष जिला कलेक्टर और सचिव, जिला शिक्षा अधिकारी होते हैं, लेकिन कोरोना काल के चलते ग्राउंड की ओर कोई भी अधिकारी ध्यान नहीं दे रहा है. नतीजा अब यह है कि ओलंपिक ग्राउंड घास के मैदान में तब्दील हो गया है.
कोरोना के चलते खिलाड़ियों की प्रैक्टिस हुई बंद
जिला ओलंपिक ग्राउंड में खिलाड़ी प्रैक्टिस कर अपनी तैयारियां करते थे. ग्राउंड की देखरेख जिला ओलंपिक संघ करता है, जिसके लिए सरकारी बजट भी आता है, लेकिन जब से कोरोना ने दस्तक दी है, तब से इस मैदान की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है. कोरोना काल के चलते ग्राउंड में कोई भी गतिविधियां नहीं हो रही हैं. मामले में जब ईटीवी भारत ने अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कैमरे के सामने आने से मना करते हुए कहा कि जैसे ही स्थिति सामान्य होगी, ग्राउंड को ठीक करा लिया जाएगा.
कौन थे मेजर ध्यानचंद
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का आज 115वां जन्मदिन है. ध्यानचंद ने भारत को लगातार तीन बार ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलवाया था. ध्यानचंद की बॉल पर बेजोड़ पकड़ थी, जिससे उन्हें 'द विजार्ड ऑफ इंडियन हॉकी' कहा जाता था. उन्होंने अपने इंटरनेशनल करियर में400 से ज्यादा गोल किए. उन्होंने अपना आखिरी मैच 1948 में खेला था. बता दें कि मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को प्रयागराज में हुआ था.
ऐसे कहलाए हॉकी के जादूगर
इस दिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. ध्यानचंद की आत्मकथा का नाम गोल है और उनका नाम ध्यान सिंह था. वे 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए थे और चांदनी रात में प्रैक्टिस किया करते थे, जिससे उन्हें ध्यानचंद कहा जाने लगा. 1928 में उन्होंने एम्सटर्डम ओलंपिक में सबसे ज्यादा 14 गोल किए, तब उस दौरान एक स्थानीय अखबार ने लिखा था कि, यह खेल नहीं 'जादू' था और ध्यानचंद 'हॉकी के जादूगर' हैं, तभी से उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाने लगा.
हिटलर ने दिया था ऑफर
1956 में उन्हें पद्म भूषण मिला और भारत रत्न देने की मांग उठती रही है. ध्यानचंद के नाम भी पुरस्कार दिया जाता है. 1936 के ओलंपिक में हॉकी के फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हरा दिया था. इस हार से दुखी होकर जर्मनी का तानाशाह हिटलर स्टेडियम छोड़कर चला गया था. हिटलर ने उन्हें जर्मनी की सेना में शामिल होकर हॉकी खेलने का ऑफर दिया था, लेकिन मेजर ध्यानचंद ने उसे ठुकरा दिया था. मेजर ध्यानचंद का निधन 3 दिसंबर 1979 को हुआ था और उनका अंतिम संस्कार झांसी के उसी मैदान में हुआ था, जहां से उन्होंने हॉकी सीखना शुरू की थी.