छिंदवाड़ा। कोरोना के खिलाफ जंग का लॉकडाउन 3.0 जारी है. सब कुछ मानों ठहर सा गया है. जो जहां है वहीं रुक गया है. लॉकडाउन का असर कई क्षेत्रों में देखने को मिल रहा है. इससे किसान भी प्रभावित हैं. एक तरफ जहां सब्जियों के दाम बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इसका लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है. नौबत ये आ गई है कि किसानों की फसल अब खेत में ही सड़ रही है.
अब तो दो वक्त की रोटी का भी संकट प्राकृतिक आपदा और लॉकडाउन
छिंदवाड़ा जिले के सौसर विधानसभा की कन्हान नदी में कई पीढ़ियों से पारंपरिक खेती कर रहे किसानों की कमर अब इन मुश्किल हालातों में टूटने लगी है. इनके सामने अपने परिवार को पालने का संकट खड़ा हो गया है, प्राकृतिक आपदा और लॉकडाउन के चलते इनकी फसलें अब खेत में लगी-लगी खराब हो रही है. और लागत का 10 फीसदी भी नहीं निकल पाया है.
लागत भी नहीं मिली
दरअसल ये ढीमर समाज के किसान कई पीढ़ियों से डिंगरा की फसल लगाते आ रहे हैं. यहां सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र और दूसरे जिलों में भी डिंगरा जाता है. लेकिन आपदा का कहर इन पर ऐसा बरसा है कि मुनाफा तो छोड़िए दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा होता दिखाई दे रहा है.
आपदा, लॉकडाउन और रेत माफिया
ये मजबूर किसान खेतों में तैयार हुई फसल को लेकर किसी तरह पुलिस के डंडे को सहते हुए बाजार पहुंचते हैं, तो उसे कहां बेंचे, इन्हें लॉकडाउन में कुछ समझ नहीं आता है. और जैसे तैसे बाजार पहुंच भी जाएं तो खरीददार ही नहीं मिलता. आपदा इतनी बस नहीं है, एक और आपदा इन पर है, और वो है रेत माफियाओं की आपदा..दरअसल नदी के किनारे जाने वाले रेत माफिया इन किसानों की फसल को चौपट करने में अपनी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं...लिहाजा इन किसानों पर प्राकृतिक आपदा, और कोरोना आपदा के साथ रेत माफियाओं का आपदा भी इन पर टूट पड़ा है.
लागत ये और मुनाफा क्या ?
इतना ही नहीं प्राकृतिक आपदा के चलते इन किसानों की फसल शिवरात्रि और होली के बीच हुई बारिश ने तबाह कर दिया था, और उसके बाद जैसे तैसे इनमें जो उम्मीदों की रोशनी बची थी, उसे कोरोना की कहर ने परास्त कर दिया. लेकिन नदी की बीच धार में खड़े इन किसानों ने एक-एक पाई जोड़कर करीब 65 हजार की लागत से खेती की...लेकिन इन्हें तो महज इस मेहनत का रिजल्ट 6 से 7 हजार ही मिला.
अगर इन किसानों की माने तो इनके परिवार में 12 से 13 लोग हैं उन्हें कैसे पालेंगे इन्हें अब कुछ समझ नहीं आ रहा है. अब तो इन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब होगी या नहीं ये भी इन्हें नहीं पता है.