जबलपुर। डिंडोरी जिले की आदिवासी महिला लहरी बाई डेढ़ सौ किस्म के मोटे अनाज की वैरायटीओं के साथ दिल्ली में हैं, इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के चलते लहरी बाई को इस आयोजन में शामिल होने का मौका मिला है. लहरी बाई अंतर्राष्ट्रीय मेहमानों के सामने मध्यप्रदेश के डिंडोरी के जंगलों में होने वाले प्राकृतिक अनाज को प्रदर्शित करेंगी, इससे केवल मध्यप्रदेश का सम्मान नहीं बढ़ा है बल्कि लहरी की वजह से अंतरराष्ट्रीय ऑर्डर भी मिल सकते हैं और इन पिछड़े इलाकों को विकास की एक नई राह मिल सकती है.
लहरी बाई बेगा:मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में बैगा आदिवासी रहते हैं, बैगा आदिवासी अभी भी अपनी पुरानी परंपराओं से अभी भी जुड़े हुए आदिवासी माने जाते हैं और यह घने जंगलों के बीच ही अपनी बस्तियां बसते हैं. लहरी इन्हीं बैगा आदिवासियों में से एक है, बैगा आदिवासी सदियों से जंगलों के बीच में छोटे-छोटे खेत बनाकर खेती करते रहे हैं. लहरी बाई के पिता के पास बीजों का अच्छा भंडार होता था, यह काम उन्होंने अपनी बेटी को भी सिखा दिया और लहरी ने अपने आसपास के इलाके से बीज इकट्ठा करना शुरू किए. आज लहरी के पास डेढ़ सौ से ज्यादा मोटे अनाज के बीच रहते हैं, जो वह अपने आसपास के दूसरे लोगों को बांटते हैं और इसे एक बैंक के रूप में चलाया जाता है. इसके एवज में किसी से पैसा नहीं लिया जाता, बल्कि बीज वापस लिए जाते हैं. लहरी के इस प्रयास की वजह से दूसरे आदिवासियों ने भी जंगल के पुराने बीजों को इकट्ठा करना शुरू किया और लहरी बाई का यह प्रयास रंग लाया.
150 किस्म के प्राकृतिक बीजों का संरक्षण:आज लहरी की वजह से हमारे पास सदियों पुराने प्राकृतिक बीज उपलब्ध हैं, जिनमें किसी किस्म की जेनेटिक छेड़छाड़ नहीं की गई है और इन बीजों में न केवल पौष्टिकता है. बल्कि इनके औषधीय महत्त्व भी हैं, लहरी का यह प्रयास अब धीरे-धीरे रंग ला रहा है. पहले लहरी को केवल मध्यप्रदेश में ही जाना जाता था, लेकिन अब लहरी के काम को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने वाली है. यह साल इंटरनेशनल मिलेट्स के रूप में मनाया जा रहा है और लहरी भाई बैग आपका यह काम जी-20 की वजह से पूरी दुनिया के लोग देख सकेंगे. लहरी को भी जी-20 में मोटे अनाज के प्रदर्शन और अपने बैंक के कामकाज को दुनिया के 20 देशों से आने वाले लोगों को दिखाने का मौका मिलेगा. लहरी ने केवल डिंडोरी का ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश का मान बढ़ाया है.