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70 साल से बीजेपी के लिए सपना रही ये सीट, यहां नहीं चलता किसी का जादू, हर लहर बेअसर - बीजेपी के लिए कमलनाथ बने चुनौती

Kamal Nath challenge for BJP: छिंदवाड़ा सीट यानि कांग्रेस का वह अभेद्य किला जिसे जीतना बीजेपी के लिए किसी सपने जैसा है. पिछले 70 साल से यह एकमात्र ऐसी सीट है जहां बीजेपी का जादू नहीं चला.पिछले चुनाव में मोदी लहर भी यहां बेसर हो गई थी.सवाल यह है कि क्या इस बार बीजेपी यह किला फतह कर पाएगी. इस किले को ढहाने के लिए मोदी से लेकर योगी ने पूरी ताकत लगा दी. आखिर आज भी क्यों कांग्रेस का है ये अभेद किला जानिए वजह.

Chhindwara election 2023
छिंदवाड़ा सीट जीतना बीजेपी के लिए सपने जैसा

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Dec 2, 2023, 6:05 PM IST

Updated : Dec 2, 2023, 6:33 PM IST

छिंदवाड़ा।नतीजों का कांउटडाउन शुरू हो चुका है. हर प्रत्याशी की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों सरकार बनाने का दावा कर रही हैं. देश की सबसे चर्चित सीट छिंदवाड़ा पर भी बीजेपी की नजरें टिकी हैं. यह कांग्रेस का एक ऐसा किला है जिसे बीजेपी आज तक भेद नहीं पाई है यानि यह एक अभेद्य किला है.

आपातकाल के बाद हुए चुनाव में भी जीती सीट:जब इंदिरा गांधी के द्वारा देश में आपातकाल लगाए जाने के बाद 1977 में आम चुनाव हुए तो जनता लहर में सेंट्रल इंडिया की सभी सीट कांग्रेस हार गई थी. एकमात्र छिंदवाड़ा सीट से कांग्रेस के गार्गी शंकर मिश्रा चुनाव जीते थे.

इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को कहा तीसरा बेटा: 1980 के लोकसभा चुनाव के दौरान स्थानीय नेताओं ने सांसद गार्गी शंकर मिश्रा का विरोध करते हुए टिकट बदलने की मांग की. उस दौरान इंदिरा गांधी ने अपना तीसरा बेटा बताते हुए कमलनाथ को छिंदवाड़ा लोकसभा से चुनाव लड़ाया और उसके बाद से फिर कमलनाथ लगातार 9 लोकसभा चुनाव जीते. कमलनाथ केंद्र में कई बड़े मंत्रालय में मंत्री भी रहे।

कमलनाथ का गढ़ है छिंदवाड़ा

एक बार नहीं मिला था टिकट: हवालाकांड में नाम सामने आने पर 1996 के चुनाव में कमलनाथ को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था. उनकी पत्नी अलकानाथ को कांंग्रेस ने यहां से टिकट दिया और वे चुनाव जीतीं. 2019 में जब कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तो उस दौरान छिंदवाड़ा लोकसभा से उनके बेटे नकुलनाथ को उतारा गया और वे भी चुनाव जीतकर सांसद बने.

छिंदवाड़ा से सांसद हैं नकुलनाथ

एक बार हारे कमलनाथ:1996 में पत्नी अलकानाथ लोकसभा चुनाव जीतीं और 1997 में उनके त्यागपत्र देने के बाद कमलनाथ ने चुनाव लड़ा. बीजेपी ने सुंदरलाल पटवा को मैदान में उतारा. इस दौरान कमलनाथ चुनाव हार गए थे.

कब किसका रहा कब्जा: छिंदवाड़ा लोकसभा के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो 1952 से लेकर 2019 तक यहां पर कांग्रेस ने कब्जा जमाए रखा. इस दौरान 1 साल के लिए 1997 के उपचुनाव में भाजपा को जनता ने मौका दिया था. 1952 के आम चुनाव में छिंदवाड़ा से कांग्रेस के रायचंद भाई शाह लोकसभा सदस्य बने. उसके बाद 1957 में नारायण राव वाडिवा सांसद रहे. इसके बाद 1957 और 1962 में भिखुलाल लक्ष्मी चंद और 1967 से गार्गी शंकर मिश्रा लगातार 1977 तक छिंदवाड़ा लोकसभा से सांसद रहे. फिर 1980 के चुनाव के बाद से कमलनाथ लगातार नौ बार सांसद रहे. जिसमें 1996 में उनकी पत्नी अलकानाथ और 2019 कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ सांसद चुने गए.

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हराने के लिए बीजेपी ने रचा था चक्रव्यूह:2018 के विधानसभा चुनाव में जब कमलनाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी तो 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए छिंदवाड़ा से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को मैदान में उतारा गया. भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के किले को ढहाने के लिए चक्रव्यूह रचा. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छिंदवाड़ा में 2018 के विधानसभा चुनाव में बड़ी सभा की थी लेकिन जिले की सातों विधानसभा बीजेपी हार गई. इतना ही नहीं जब 2019 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश के कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित 28 लोकसभा में कांग्रेस के प्रत्याशी हार गए. वहीं छिंदवाड़ा लोकसभा एकमात्र ऐसी सीट थी जहां कांग्रेस से नकुलनाथ चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.

इस बार क्या होगा: 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भी भारतीय जनता पार्टी ने छिंदवाड़ा को टारगेट किया. मध्य प्रदेश महाविजय अभियान की शुरुआत केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने छिंदवाड़ा से की. उसके बाद कई केंद्रीय मंत्रियों सहित भाजपा के दिग्गज नेताओं ने छिंदवाड़ा में डेरा डालकर रखा. भाजपा की प्लानिंग थी की कमलनाथ को छिंदवाड़ा में ही घेर लिया जाए ताकि मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सक्रियता कम रहे और इस रणनीति में बीजेपी काफी हद तक कामयाब भी रही.

Last Updated : Dec 2, 2023, 6:33 PM IST

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