छिंदवाड़ा। भले ही मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार चुनावी गणित हल करने में असफल साबित हुई हो, लेकिन छिंदवाड़ा में 42 साल बाद एक बार फिर इतिहास दोहराया गया है क्योंकि 25-26 जून 1975 की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक चले आपातकाल के बाद जब आम चुनाव हुए, तब पूरे देश में इंदिरा विरोधी लहर चली थी और खुद इंदिरा गांधी भी रायबरेली से चुनाव हार गईं थी. उस वक्त छिंदवाड़ा में कांग्रेस के गार्गी शंकर मिश्रा ने जीत दर्ज कर इतिहास रचा था, जिसे चार दशक बाद एक बार फिर छिंदवाड़ा ने ही दोहराया है और 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही अमेठी से चुनाव हार गए हैं, लेकिन मध्यप्रदेश की महज एक सीट छिंदवाड़ा पर जीत दर्ज कर कांग्रेस के नकुलनाथ ने बमुश्किल लाज बचाई है.
जीत का प्रमाण पत्र लेते नकुलनाथ दरअसल, 42 साल पहले इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाने के बाद जब देश में आम चुनाव हुए थे तो देश में इंदिरा विरोधी आंधी चली थी और देश सहित मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था, फिर भी छिंदवाड़ा ने कांग्रेस पर भरोसा जताया था और गार्गी शंकर मिश्र को संसद में भेजा था, एक बार फिर वैसे ही हालात छिंदवाड़ा में देखने को मिले हैं क्योंकि पूरे देश में मोदी लहर ने विपक्ष को लगभग उखाड़ फेंका है और मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक मात्र छिंदवाड़ा सीट पर मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने जीत दर्ज की है.
लोकसभा चुनाव 2019 में मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिवंगत मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे व पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जैसे धुरंधर मोदी की आंधी में चित हो गये. हालांकि, मुख्यमंत्री कमलनाथ छिंदवाड़ा से विधानसभा उपचुनाव जीत गये, लेकिन जीतकर भी हार गये कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ ने बमुश्किल बचाई लाज.
वहीं मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार बनने के बाद छिंदवाड़ा विधायक दीपक सक्सेना ने कमलनाथ के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद लोकसभा चुनाव के साथ वहां उपचुनाव भी हुए, जिसमें कमलनाथ ने अपने प्रतिद्वंदी बीजेपी उम्मीदवार विवेक साहू को करीब 15 हजार वोटों से हरा दिया, लेकिन वह प्रदेश में कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक लोकसभा सीट ही डाल पायें. विधानसभा चुनाव में जिस कमलनाथ के प्रबंधन की दाद दी जा रही थी, चार महीने में ही उनके प्रबंधन की हवा निकल गयी.
इस सीट पर 1951 में पहला आम चुनाव हुआ था, तब से अब तक यहां सिर्फ कांग्रेस को ही जीत मिलती रही है, मध्यप्रदेश में कांग्रेस का ये सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है, 1997 में कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के कमलनाथ को बीजेपी के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने उन्हें हराया था, लेकिन अगले साल हुए आम चुनाव में कमलनाथ ने हिसाब बराबर करते हुए उन्हें मात दे दी थी. 1996 में हवाला कांड में नाम आने के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ का टिकट काटकर उनकी पत्नी अलका को उम्मीदवार बनाया था.