छिंदवाड़ा। साल 2019 आने से पहले ही छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा, 2018 के जाते-जाते तब छिंदवाड़ा के सांसद और कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो विधानसभा चुनाव में बीजेपी का छिंदवाड़ा की सातों विधानसभा सीटों से सूपड़ा साफ कर दिया.
राजनीति के गलियारों में चर्चित रहा छिंदवाड़ा साल 2019 छिंदवाड़ा की राजनीति का गढ़ बन गया था, जहां मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 15 साल की बीजेपी की सत्ता को हटाते हुए कांग्रेस को मध्यप्रदेश में काबिज किया और 17 दिसंबर 2018 को मध्यप्रदेश की कमान संभाली, उसके बाद मानो छिंदवाड़ा में बीजेपी शून्य हो गई थी. 40 साल तक छिंदवाड़ा के सांसद रहे कमलनाथ ने जब विधानसभा की बागडोर संभाली तो छिंदवाड़ा की सभी सात विधानसभा सीटों में कांग्रेस के विधायक चुनकर आए.
कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही उनके बेटे नकुलनाथ की एंट्री भी सियासत में हो गई. और एंट्री भी ऐसी कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जो एक सीट मध्यप्रदेश में मिली वो नकुलनाथ की ही थी. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कमलनाथ को अपना तीसरा बेटा बताकर छिंदवाड़ा सौंपा और कमलनाथ ने 40 साल तक यहां का सांसद रहने के बाद अपने बेटे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा की सेवा के लिए सौंप दिया. कमलनाथ के बाद नकुलनाथ को यहां से लोकसभा टिकट देने पर जहां चुनाव से पहले विरोध का सामना करना पड़ा तो वहीं चुनाव के नतीजों में ये साफ हो गया कि कमलनाथ का प्रभाव छिंदवाड़ा की जनता में उनकी सीट छोड़ने के बाद भी है.
कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही प्रदेश की जनता ने मध्यप्रदेश का विकास भी छिंदवाड़ा की तरह होने की उम्मीद जताई तो कमलनाथ की अगवानी में कांग्रेस इसी मॉडल के बल पर चुनाव लड़ी. यहां के विकास की बात की जाए तो कमलनाथ ने इस क्षेत्र की जनता को अच्छी शिक्षा, सड़क और रोजगार से लेकर हर वो चीज दी जो लोगों की प्राथमिक जरूरतें थीं. नतीजतन छिंदवाड़ा मॉडल ने भी कांग्रेस को सत्ता दिलाने में अहम भूमिका निभाई. छिंदवाड़ा से 9 बार सांसद रहे कमलनाथ का सीएम बनने से पहले प्रदेश की किसी एक विधानसभा सीट से विधायक होना जरूरी था, इसी के चलते उन्होंने एक बार फिर छिंदवाड़ा से ही उपचुनाव लड़ा और उसमें भी जीत हासिल की.
लगातार एक के बाद एक राजनीतिक घटना क्रमों के चलते साल 2019 में छिंदवाड़ा सिर्फ प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में चर्चित रहा.