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पिता ही गुरु: कभी स्कूल में नहीं रखा कदम, कंठस्थ है पूरी श्रीरामचरितमानस

छिन्दवाड़ा के 62 साल का एक शख्स कभी स्कूल नहीं गया लेकिन गुरु कृपा से महरूम भी नहीं रहा. पिता ने टीचर बनकर जो ज्ञान दिया वो आज तक साथ है. हरफनमौला गिरीश रामकथा बड़े मनमोहक अंदाज में सुनाते हैं.

Girish who never stepped into school
हरफनमौला गिरीश

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Published : Jul 24, 2021, 12:56 PM IST

Updated : Jul 24, 2021, 2:30 PM IST

छिन्दवाड़ा। शिक्षा दीक्षा के लिए जरूरी नहीं है कि स्कूल कॉलेज ही जाएं आपको ऐसी शिक्षा घर में भी मिल सकती है जो आपके लिए मिसाल हो सकती है कुछ ऐसा ही हुआ है छिंदवाड़ा के राजोला में रहने वाले 62 साल के गिरीश विश्वकर्मा के साथ जिन्होंने कभी स्कूल का रुख नहीं किया और कोई पढ़ाई भी नहीं की लेकिन उनके पिता ने उन्हें पूरी श्री रामचरितमानस मौखिक ही याद करा दी थी.

हरफनमौला गिरीश
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अर्जुन पुत्र अभिमन्यु से मिलती है कहानी
62 साल के गिरीश विश्वकर्मा कहते हैं कि उनकी कहानी कुछ-कुछ अर्जुन पुत्र अभिमन्यु से मिलती है. बताते हैं कि जब मां के गर्भ में था तो पिता मां को श्रीरामचरितमानस सुनाया करते थे. घरवाले बताते हैं कि जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उन्हें काफी श्लोक कंठस्थ थे. इससे ही अंदाजा लगाया जाने लगा कि गर्भ के दौरान ही उन्हें काफी कुछ श्रीरामचरितमानस याद हो गई इस बाकी दुनिया में आने के बाद उनके पिता ने उन्हें रामचरितमानस सिखाना शुरू किया और 5 साल की उम्र में ही उन्हें रामचरितमानस पूरी तरीके से याद हो गई थी.

धार्मिक स्थानों में घूमकर करते थे राम कथा
गिरीश विश्वकर्मा के पिता धार्मिक स्थानों का भ्रमण करते थे और इधर-उधर घूम कर राम कथा सुनाते थे. इसी वजह से वह कभी कहीं स्थिर नहीं रहे इस कारण कभी स्कूल में दाखिला नहीं ले पाए लेकिन उनके पिता ने ही उनको हिंदी का ज्ञान दिया. उसके साथ ही वे भी धर्म के रास्ते पर चलने लगे और श्रीरामचरितमानस सीखने के साथ-साथ अब वे खुद भी कथा करने लगे हैं.

7 अनोखे तरीके से बजाते हैं हारमोनियम
सिर्फ रामचरितमानस का ही संपूर्ण ज्ञान नहीं बल्कि गिरीश विश्वकर्मा को संगीत का भी अद्भुत ज्ञान है. जिस हारमोनियम को आम व्यक्ति सीखने के लिए संगीत स्कूलों का रुख करना होता है, वह अद्भुत कला भी गिरीश विश्वकर्मा को बिना सीखे आती है. गिरीश विश्वकर्मा सात अनोखे तरीके से हारमोनियम बजाते हैं. जिसमें उल्टा हारमोनियम सिर पर रखकर, हारमोनियम पीठ के पीछे रखकर, हारमोनियम की keys को ढककर बजाते हैं. ऐसी कला जो अद्भुत है और देखने वाला दांतों तले ऊंगली दबा लेता है.

गिरीश विश्वकर्मा ने अपने पिता को ही गुरु माना और उसके बाद उनकी दी हुई शिक्षा को ही जीवन का अभिन्न अंग माना. अपने दो बेटों को भी संगीत की शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं, दोनों बेटे संगीत में पारंगत है तो बेटी ने भी भजनों में महारत हासिल की है.

Last Updated : Jul 24, 2021, 2:30 PM IST

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