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मिलिए बुंदेलखंड की पैडवुमंस से, आमदनी बढ़ाने के साथ महिलाओं की जिंदगी में भर रही हैं 'रंग'

बुंदेलखंड की ऐसी पैडवुमंस जो सैनेटरी नैपकिन का उत्पादन कर ग्रामीणों महिलाओं के बीच जाकर उन्हें बेचती हैं. साथ ही उनके बीच पीरियडस को लेकर होने वाली समस्याओं और शर्म को दूर करने का जागरुक अभियान चलाती हैं.

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Published : Jul 5, 2019, 8:57 PM IST

छतरपुर। हमारे देश में एक वक्त ऐसा था जब महिलाओं को हर महीने होने वाले पीरियडस को लेकर चर्चा करने में लोग शर्म महसूस कर रहे थे लेकिन बदलते समय में लोगों में जागरूकता आई है. वक्त के साथ ही देश, समाज और लोगों की सोच भी बदल गई है. पीरियडस को लेकर महिलाएं अब खुलकर बात कर रहीं हैं. ईटीवी भारत ने बुंदेलखंड की उन पैड वुमन्स के बारे में बता रहा है, जो पिछले 3 सालों से सैनिटरी पैड का उत्पादन कर गांव की महिलाओं को जागरूक करने का काम कर रहीं हैं.


महिलाओं के मासिक धर्म के बारे में जागरूकता को लेकर किसी महिला नहीं बल्कि एक पुरूष ने सबसे पहले संदेश दिया. फिल्मी दुनिया की जानी मानी हस्ती अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म पैडमेन के जरिए पीरियड्स को लेकर लोगों को संदेश दिया. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में महिलाओं में इस बात को लेकर गजब की जागरूकता दिखी. महिलाओं का एक ग्रुप पीरियड्स को लेकर न सिर्फ महिलाएं चर्चा कर रही हैं बल्कि सैनिटरी पैड का उत्पादन कर गांव की महिलाओं को जागरूक करने का काम कर रहीं हैं.

ये हैं बुंदेलखंड की पैडवुमंस

बुंदेलखंड में छतरपुर के छोटे से गांव में पिछले 3 सालों से कुछ महिलाएं ग्रामीण महिलाओं व बच्चियों को सेनेटरी नैपकिन की महत्वता और पीरियडस के समय होने वाली समस्याओं को लेकर जागरूक कर रही हैं. महिलाएं सैनिटरी नैपकिन को गांव में ही बनाती हैं. उसे गांव की युवतियों के साथ मिलकर ही दूसरी ग्रामीण महिलाओंमें बेचती हैं. इतना ही नहीं महिलाएं घर-घर जाकर दूसरी महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन की महत्व के बारे में बताते हुए इस्तेमाल की सलाह भी देती हैं.

बुंदेलखंड में आज भी ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं सैनेटरी नेपकिन व महावारी से जुड़ी समस्याओं को लेकर कुछ भी बोलने से कतराती हुई नजर आती हैं. ऐसे में यह बुंदेलखंड की पैड वुमन्स लगातार ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को माहवारी से समस्याओं को लेकर लगातार जागरूक कर रही हैं. जिससे आने वाले समय में उन्हें इससे जुड़ी किसी भी समस्या का सामना ना करना पड़े.


पहले परिवार नहीं देता था साथ
सेनेटरी नैपकिन बनाने वाली महिलाएं बताती है कि पहले गांव में इसका उपयोग बहुत कम था, लेकिन अब धीरे-धीरे उपयोग बढ़ता जा रहा है. यही वजह है कि अब वे महीने में एक हजार से लेकर दो हजार सेनेटरी नैपकिन का उत्पादन कर लेती हैं. साथ ही गांव की ही कुछ युवतियां इसे बेचने में भी मदद करती हैं. महिलाओं का कहना है कि पहले उनके इस काम को लेकर उनके परिवार के लोग सहयोग नहीं करते थे. ज्यादातर लोग उन्हें इस काम को लेकर नकार देते थे. लेकिन अब उनके परिवार के सभी सदस्य उनका इस काम में भरपूर सहयोग करते हैं.


मध्यप्रदेश आजीविका मिशन के तहत मिला सहयोग
सैनेटरी नैपकिन बनाने वालीं महिलाओं का कहना है कि पहले यह सब कुछ इतना आसान नहीं था. गांव की दूसरी महिलाएं और लड़कियां इस बारे में बात करना भी पसंद नहीं करतीं थी. लेकिन अब धीरे-धीरे हालात सामान्य हो रहे हैं. गांव की दूसरी महिलाओं का भी भरपूर मदद मिल रही है. महिलाओं का कहना है कि 3 साल पहले उन्होंने प्रदेश राज्य आजीविका मिशन के तहत आर्थिक सहयोग लिया था. उन्होंने ही सैनिटरी नैपकिन बनाने का उपकरण व मशीनों की व्यवस्था की थी.


10 महिलाओं का समूह 20 में हुआ तब्दील
10 महिलाओं ने एक ग्रुप की शुरुआत की जो धीरे-धीरे 20 महिलाओं के समूह में तब्दील हो गया है. ज्यादा महिलाओं के ग्रुप में जुड़ने से काम में तेजी आई है. बुंदलेखंड की इन पैड वुमन्स की तारीफ धीरे-धीरे अब पूरा जिला करने लगा है. छतरपुर जिले के छोटे से गांव की महिलाएं दूसरी महिलाओं के लिए एक मिसाल बनकर उभरी हैं.

बुंदेलखंड के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में जहां आज भी महिलाएं व युवतियां सैनेटरी पैड और पीरियडस से जुड़ी समस्याओं को लेकर बात भी नहीं करती. ऐसे में इन महिलाओं की कोशिश रंग लायी है और वो खुलकर बात करने लगी हैं. इस समूह से जुड़ी सभी महिलाएं एवं बच्चियां महीने में लगभग 3 से 5 हजार भी कमा लेती हैं जिससे उनके घर में आर्थिक सहयोग भी हो जाता है!

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