छतरपुर। भारत को हम भले ही समृद्ध विकासशील देश की श्रेणी में शामिल कर लें, लेकिन आदिवासी अब भी समाज की मुख्य धारा से कटे नजर आते हैं. गरीबी उन्मूलन की बात वर्षों से की जा रही है, इसके बावजूद समाज में आर्थिक विषमता और बेरोजगारी ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं. इन आदिवासियों को अब तक न ही रहने को घर मिल पाया है और न ही कोई कमाई का साधन.
रहने के लिए नहीं घर, कैसे कटेगा जीवन का सफर, कौन सुने इनकी गुहार..?
खजुराहो से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम कर्री में आदिवासियों को अब तक न ही रहने को घर मिल पाया है और न ही कोई कमाई का साधन.
विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो से लगभग 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम कर्री का एक अहम हिस्सा मानिकपुर जहां पर अधिकांश आदिवासी रहते हैं इस गांव की जनसंख्या 600 के आसपास हैं. दौर बदलता गया सरकारें बदलती गई अगर कुछ नहीं बदला तो वो है यहां के हालात, यहां रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोग आज भी महंगाई के कोड़े की मार झेल रहे हैं.
सरकार भले ही आदिवासियों को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी संस्कृति और जीवन शैली को समझे बिना ही योजना बना लेती हैं. ऐसी योजनाओं का आदिवासियों को लाभ नहीं होता, अलबत्ता योजना बनाने वाले जरूर फायदे में रहते हैं। महंगाई के चलते आज आदिवासी दैनिक उपयोग की चीजें भी नहीं खरीद पा रहे हैं और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं. आदिवासियों की अनदेखी कर तात्कालिक राजनीतिक लाभ देने वाली बातों को हवा देना एक परंपरा बन गई है.